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वे एकता प्राप्त करनेका उपाय बताते हुए कहते हैं: "केवल कामके द्वारा ही हम एकता प्राप्त कर सकते हैं।" अभय आश्रमके निवासी यही तो कर रहे हैं; क्योंकि वे कताई करके हिन्दुओंकी, मुसलमानोंकी और वस्तुतः हर किसीकी, जिन्हें उस साधन द्वारा मददकी आवश्यकता है, मदद कर रहे हैं। वे अस्पृश्य लड़के और लड़कियोंको अपनी शालामें शिक्षा देते हैं और चरखा चलाना भी सिखाते हैं। अपने चिकित्सालयके माध्यमसे वे जाति और धर्मका भेद किये बिना सबको राहत पहुँचाते हैं। उन्हें एकतापर उपदेश देनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। वे तो उसे अपने जीवनमें जी रहे हैं। उनके इस सेवा-कार्यसे प्रभावित होकर कविवर आगे चलकर कहते हैं:

जीवन एक सजीव अखण्ड वस्तु है। अन्ततः महत्त्व तो उस आन्तरिक सत्ताका ही है जो हमें प्राणित करती। यह सही नहीं है कि हमारे हाथोंमें बलकी कमी है। सत्य तो यह है कि हमारा मन जागृत नहीं हुआ है...इसलिए हमारी सबसे बड़ी लड़ाई मानसिक शिथिलता के विरुद्ध ही है। गाँव भी एक सजीव हस्ती है। आप इसके किसी भी विभागकी उपेक्षा नहीं कर सकते; एक विभागकी उपेक्षा करनेसे दूसरे विभागको भी नुकसान पहुँचेगा। यह समझ लेना चाहिए कि हमारे देशकी आत्मा एक और अखण्ड है। उसी तरह हमारे दुःख और दुर्बलताएँ भी एक दूसरेसे गुथी हुई और इसलिए अखण्ड हैं।

हमारी असफलताकी चर्चा करते हुए कविवर ठीक ही कहते हैं:

मनुष्यकी रचना उस हदतक ही सुन्दर होती है जिस हदतक वह अपनेको उस कार्य में उड़ेल देता है। हमारे उपक्रमोंमें अकसर हमें असफलता क्यों मिलती है? कारण यह है कि अपने प्रिय कार्य में भी हम अपनेको पूरी तरह नहीं उड़ेलते। हम लोग दाहिने हाथसे जो देते हैं वह बायें हाथसे लौटा लेते हैं।

अमेरिका क्यों नहीं जाते?

एक सज्जन लिखते हैं:

आप अमेरिकाके आमन्त्रणको अस्वीकार कर रहे हैं। निःसन्देह आप यह बात मुझसे अधिक अच्छी तरह जानते होंगे कि वहाँ जानेके लिए यह उपयुक्त समय है या नहीं। फिर भी मैं यह नहीं समझ सकता कि आप अमेरिका क्यों न जायें। आपको मुख्य और एक मात्र दलील यह है कि अभी आप अपने ही देशमें, अपने ही लोगोंके बीच पूर्ण रूपसे सफल नहीं हो पाये हैं। परन्तु सफलता या असफलताका निर्णायक तो केवल ईश्वर ही है। क्या आप यह कहना चाहते हैं कि आपके द्वारा शुरू किये गये अहिंसा आन्दोलनकी नींव अभीतक दृढ़ नहीं हो पाई है? सत्य ही सत्यकी सहायता करता है। क्या आप मुझसे इस बातमें सहमत नहीं हैं कि अहिंसा आन्दोलनका सारे