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लिए उनकी भतीजी कातती है। मैं सहर्ष इस भूलको प्रकाशित करता हूँ। चूँकि यह समाचार मुझे प्रामाणिक सूत्रसे मिला था, इसलिए मैंने इसे प्रकाशित किया था। खादी आन्दोलन अथवा किसी भी आन्दोलनको अतिशयोक्तिसे कुछ लाभ नहीं मिल सकता। छोटी-सी भी भूल शुद्ध आन्दोलनको नुकसान पहुँचाती है। यदि विधान परिषदोंके सदस्य कातते हैं तो भले ही इस बातका प्रचार किया जा सकता है; परन्तु चाहे विधान परिषदोंके सदस्य कातें या न कातें, बहुत सारे लोग कातें अथवा थोड़े-से ही लोग कातें, लेकिन चरखा आन्दोलन उसके विशुद्ध रूपमें चलाया जाना चाहिए। अगर कताईका अपने-आपमें कोई महत्त्व है, अर्थात् यदि भारतमें लाखों भूखे मनुष्य हैं, यदि वे कमसे-कम अपना एक तिहाई समय भी व्यर्थ ही नष्ट कर रहे हैं, और यदि हाथकताई ही एक ऐसा धन्धा है जो इतने विशाल मानव समुदायको तत्काल उपलब्ध है तो यह आन्दोलन प्रगति करेगा, फिर चाहे कुछ समयके लिए केवल एक ही सच्चा व्यक्ति इसका प्रतिनिधित्व क्यों न करे। और जिन मान्यताओंपर वह आधारित है, यदि वे ही गलत हैं तो फिर चाहे वाइसराय स्वयं ही क्यों न कातें, खादी आन्दोलन समाप्त हो जायेगा। इसलिए प्रत्येक खादी कार्यकर्ताको यह समझ लेना चाहिये कि खादी-आन्दोलन भारतके असंख्य दीन-दुःखी लोगोंके लिए है और इसकी शीघ्र तरक्कीके लिए यह परम आवश्यक है कि इसके सम्बन्धमें जो कुछ कहा जाये, वह बिलकुल ठीक हो।

प्रकाशित किये गये आँकड़े जिस मन्त्रीने भेजे थे, उसका कहना है कि घोषित पुरस्कार धनवानोंके लिए नहीं थे, बल्कि उन गरीब लोगोंके लिए थे जो नियमित रूपसे कताई मण्डलों में जाते हैं।

किशोरोंके लिए

अखिल भारतीय चरखा संघके मन्त्रीने किशोर वयके लड़के-लड़कियोंके लिए, जो चरखा संघके सभासद होना चाहते हों, नीचे लिखा प्रार्थनापत्र तैयार किया है[१]। संचालक, तकनीकी विभाग, अखिल भारतीय चरखा संघ, सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीको सूतका अपना पहला चन्दा भेजते समय उन्हें साथमें अपने दस्तखत करके यह प्रार्थना पत्र भी भेजना चाहिए।

हरएक लड़का और लड़की, जिसे इस देशके दीन-दुःखियोंके प्रति तनिक भी सहानुभूति है, इस संघका सदस्य बनना अपना कर्त्तव्य और सौभाग्य समझेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-३-१९२६
 
  1. प्रार्थनापत्रका फार्म यहाँ नहीं दिया जा रहा है।