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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यहाँ अब अंग्रेजोंको स्वामी बनकर रहनेकी गुंजाइश नहीं है। अगर वे मित्र और सहायकके रूपमें रहना चाहें तो बेशक यहाँ उनके लिए पूरा स्थान है। अस्पृश्यता निवारणके बारेमें तो यही कहूँगा कि उक्त लेखके लेखक उसके महान् फलितार्थीको बिलकुल नहीं समझते। उनकी समझमें यह बात नहीं आ सकती कि अस्पृश्यता निवारणका प्रयोजन श्रम विभाजनकी महान् पद्धतिको किसी प्रकार छोड़े बिना हिन्दू धर्म में जो सबसे बड़ी बुराई घुस आई है, उससे उसे मुक्त करना है। यह स्वीकार करना पड़ेगा कि बहुत दूर बैठकर इस महान् आन्दोलनपर दृष्टिपात करनेवाले व्यस्त व्यक्तियोंके लिए उस अपरिचित किन्तु महत्त्वपूर्ण तत्त्वको देख पाना कठिन है, जो अस्थायी किन्तु परिचित सतह के नीचे छिपा हुआ है, और उनके लिए यह भी कठिन है कि वे उस बाहरी आवरणको ही सार समझने की गलती न करें। अहिंसक असहयोग और पाश्चात्य संसारके ऐतिहासिक स्वातंत्र्य-संघर्षके बीच भी कोई साम्य नहीं है। असह योग शरीर बल अथवा घृणापर आधारित नहीं है। इसका उद्देश्य अत्याचारीका नाश नहीं है। यह तो आत्मशुद्धिका आन्दोलन है। इसलिए इसमें अत्याचारीको अपनी भूलका एहसास कराकर सही रास्तेपर लानेका प्रयत्न किया जाता है। हो सकता है, भारत सामूहिक रूपसे अहिंसाके लिए तैयार न हो और इसलिए यह आन्दोलन विफल हो जाये। लेकिन इस आन्दोलनके महत्त्वको गलत मापदण्डसे मापना ठीक नहीं होगा। खुद मेरा विचार यह है कि यह आन्दोलन किसी भी तरह विफल नहीं हुआ है। भारतके स्वातंत्र्य-संघर्ष में अहिंसाको एक स्थायी स्थान प्राप्त हो गया है। यह कार्यक्रम एक सालमें पूरा न हो सका, इससे सिर्फ यह प्रकट होता है कि लोग इतने कम समय में एक ऐसी जबर्दस्त उथल-पुथल के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो पाये थे। किन्तु यह एक ऐसा तत्त्व है जो चुपचाप किन्तु निश्चित रूपसे जनताके दिल-दिमागमें घर करता जा रहा है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-२-१९२६

४. मद्य-निषेधकी शर्तें

बम्बईके गवर्नरने भड़ींचके अंजुमनसे साफ कह दिया है कि आप लोग मद्य निषेध चाहते हैं तो आपको शराबसे प्राप्त होनेवाले राजस्वके स्थानपर राजस्वका कोई और साधन ढूँढना होगा। दूसरे शब्दोंमें इस बुराईको रोकना सरकारका काम नहीं है। इस प्रकार शराबकी लत छोड़नेसे राजस्वमें जो कमी होगी उसे पूरा कराना सुधारकोंका काम है। इसलिए यदि मद्य निषेधवादी जल्दी मद्य-निषेध कराना चाहते हैं तो उन्हें तय कर लेना होगा कि वे गवर्नर महोदयको, जिनकी बात इस मामलेमें भारत सरकारकी नीतिका ही द्योतक है, हम क्या जवाब देंगे। पहलेसे ही करके असह्य भारसे दबे हुए कर दाताओंपर और कर लगाना में अनुचित मानता हूँ। मद्य-निषेध केवल सरकारी खर्चमें कमी करनेसे ही सम्भव है। सैनिक व्यय एक ऐसी मद है, जिसमें निश्चय ही कटौती की जा सकती है। लेकिन यह राय सही हो या न हो,