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सत्ताका दुरुपयोग

मद्य-निषेधवादियोंको, बम्बईके गवर्नर महोदयने जो कठिनाई खड़ी कर दी है, उससे निबटने के तरीकेके सम्बन्धमें अपनी नीति निश्चित करनी है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-२-१९२६

५. सत्ताका दुरुपयोग

भारतके विरोधोंके बावजूद, दक्षिण आफ्रिकी संघ-संसदने रंग-भेद विधेयक पास कर ही दिया। यह कानून भारतीय प्रवासियोंके लिए उतना हानिकर नहीं है, जितना कि वतनी लोगोंके लिए। इस कानूनसे तो लगभग ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि वतनी और एशियाई लोग खानों में ऐसा कोई काम करनेसे वंचित हो जाते हैं जो काम यूरोपीय लोग कर सकते हैं या करना चाहें। भारतीयोंपर यह निर्योग्यता लगाना बिलकुल अनावश्यक है। कारण, खानोंमें बहुत कम भारतीय काम करते हैं। जहाँतक वतनी लोगोंका सम्बन्ध है, यह कानून न केवल वैधानिक तौरपर उनकी स्थिति खराब कर देता है, बल्कि खानोंमें काम करनेवाले हजारों वतनियोंके आर्थिक हितपर भी इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तब स्वाभाविक ही था कि जनरल स्मट्सने इस कानूनके खिलाफ कड़ी चेतावनी दी और इसे फूसके ढेरपर चिनगारी फेंकने के समान बताया। यह विधेयक वतनियोंके लिए एक चुनौती है। वे भले ही अशिक्षित हों, लेकिन वे किसीसे कम स्वाभिमानी और अपने मान-सम्मानके प्रति कम जागरूक लोग नहीं हैं। अपनी असहायावस्थाके कारण वे भले ही इस चुनौतीका कोई जवाब न दे सकें, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि अगर दक्षिण आफ्रिका यूरोपीय अपनी इस उद्धततापूर्ण नीतिपर कायम रहे तो वे अपने ही नाशके बीज बोयेंगे। कहते हैं, जब यह विधेयक सिनेटके सामने जायेगा तो वह इसे अस्वीकार कर देगी; ऐसा चाहिए भी। लेकिन जिस तारमें हमें उक्त सूचना मिली है उसी तारमें हमें यह भी सूचित किया गया है कि दोनों सदनोंमें कुल मिलाकर वर्तमान सरकारका बहुमत है और इस विधेयकको पास करनेके लिए वह इस साधनका भी प्रयोग करनेका इरादा रखती है। अगर यूरोपीयों का रवैया ऐसा ही बना रहा तो लगता है कि एशिया विरोधी विधान, जिसको लेकर भारतीय जन-मानस में उथल-पुथल मची हुई है और श्री एन्ड्रयूजको जिसके स्थगित कर दिये जानेकी आशा है, स्थगित नहीं किया जायेगा। वास्तवमें इन कानूनी विधानोंका स्रोत एक ही है और ये रंगके सवालपर वर्तमान संघ-सरकारकी निश्चित नीतिके द्योतक हैं। इस नीतिपर पुनर्विचार तभी सम्भव है, जब भारत सरकार इनके खिलाफ कड़ेसे-कड़ा रुख अपनाये।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-२-१९२६