पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४६

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९. पत्र : आर० एल० सूरको

साबरमती आश्रम
११ फरवरी, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका गत मासकी २८ तारीखका पत्र मिला। बिशप फिशरको लिखे अपने पत्रमें[१] मैंने श्रीमती फिशरको सन्देश भेज दिया है। फिर भी मैंने श्रीमती फिशरको सन्देश भेजने का जो वादा किया था, उसकी याद दिलानेके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर० एल० सूर

बिशप फिशरके सचिव
मैथॉडिस्ट एपिस्कॉपल चर्च
३, मिडिलटन स्ट्रीट

कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०९४ ) की माइक्रोफिल्मसे।

१०. पत्र : आँत्वानेत मिरबेलको

साबरमती आश्रम
१२ फरवरी, १९२६

प्रिय मित्र,

मुझे आपके पत्र बराबर मिलते रहे हैं। कृपया ऐसा न सोचिए कि आप मेरी शिष्या बननेके योग्य नहीं हैं। मैं शिष्य बनाऊँ, इतना पूर्ण मैं अपने-आपको नहीं मानता। क्षण-भरके लिए भी ऐसा मत सोचिए कि जो लोग मेरे साथ आश्रममें रह रहे हैं, उन्हें में अपना शिष्य मानता हूँ। वे सब मेरे सहयोगी हैं। उनके बीच मेरी स्थिति एक बड़े-बुजुर्गकी है और मैं बड़ा बुजुर्ग इसलिए हूँ कि शायद मुझे उनसे अधिक अनुभवी माना जा सकता है और मेरा अनुभव उनके अपने अनुभवकी ही तरह उनके लाभके लिए उनको मिलता है। जिस प्रशस्त पथके बारेमें आपको मैंने बताया था, उसके विषयमें भी कुछ रहस्य नहीं है। प्रशस्त मार्ग यही है कि व्यक्ति अपना कर्तव्य अपनी योग्यतानुसार यथासम्भव अच्छे-अच्छे ढंगसे करे और सभी कार्य

 
  1. देखिए पिछला शीर्षक।