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१२. पत्र: मैनाको

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साबरमती आश्रम
१२ फरवरी, १९२६

प्रिय मैना,

काम ज्यादा होनेसे और फिर अपनी बीमारीकी वजहसे मैं तुम्हें पहले पत्र नहीं लिख सका। मुझे खुशी हुई कि बदरका विवाह हो गया है। खुशी इसलिए नहीं हुई कि मैं कुछ ऐसा मानता हूँ कि बदरके लिए विवाह करना जरूरी था, वरन् इसलिए हुई कि उसकी माँ ऐसा चाहती थी और बदर माँकी इच्छा पूरी करना कर्त्तव्य समझता था। मैं आशा करता हूँ कि बदर और उसकी पत्नी सुखपूर्वक दीर्घ कालतक जीवित रहकर सेवा-कार्य करेंगे।

बदर चाहे तो हाथ-कता रेशम पहन सकता है, लेकिन मैं यह जरूर कहूँगा कि कमसे-कम पुरुषोंकी हदतक तो रेशम मुझे बिलकुल भोंडा लगता है। लेकिन बदर या किसी अन्य व्यक्तिको भी मेरी रुचिके अनुसार चलनेकी जरूरत नहीं है। उसे अपनी रुचिका ध्यान रखना चाहिए और यदि रेशम पहनना उसे भला लगता है तो वह पहन सकता है।

तुम्हारा क्या हाल है, इन दिनों क्या कर रही हो?

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०९८) की माइक्रोफिल्मसे।

१३. पत्र: एक बहनको

साबरमती आश्रम
१२ फरवरी, १९२६

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला। मैं यह पत्र बोलकर लिखवानेके लिए विवश हूँ, क्योंकि ज्यादा लिखनेके कारण मेरे दाहिने हाथको आरामकी जरूरत है। मुझे दुःख है कि इसी अक्तूबर महीनेमें लिखा मेरा पत्र आपतक नहीं पहुँच पाया। पता नहीं, किसीने जान-बूझकर उसे आपतक नहीं पहुँचने दिया या क्या हुआ? डाककी ऐसी गड़बड़ियाँ हो ही जाती हैं। यह भी हो सकता है कि अबतक वह खोया हुआ पत्र शायद आपको मिल गया हो। मुझे खुशी है कि मेरे लेखोंसे आपको मदद और राहत मिलती है। यदि मेरे लिए कुछ प्रश्न जवाब देनेको हैं तो कृपया उन्हें लिखने में संकोच न करें।