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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए किसीको भी निराश होनेका कोई कारण नहीं है। मेरा महात्मापन मिथ्या है। वह तो मुझे मेरी बाह्य प्रवृत्तिके—मेरे राजनैतिक कार्यके—कारण प्राप्त हुआ है। वह क्षणिक है। मेरा सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्यादिका आग्रह ही मेरा अविभाज्य और सबसे अधिक मूल्यवान अंग है। उसमें मुझे जो कुछ ईश्वरदत्त प्राप्त हुआ है, उसकी अवज्ञा कोई भूलकर भी न करे। मेरा सर्वस्व तो वही है। उसमें दिखाई देनेवाली विफलताएँ सफलताकी सीढ़ियाँ हैं। इसलिए मुझे विफलताएँ भी प्रिय हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-२-१९२६

१८. गुजरातमें खादी

भाई लक्ष्मीदासने गुजरात में खादी-मण्डलकी व्यवस्थाके अन्तर्गत तैयार होनेवाली तथा जिसकी उन्हें जानकारी है, ऐसी अन्य खादीका विवरण भेजा है:[१]

इस विवरण में काठियावाड़के आँकड़े नहीं हैं। उन्हें प्राप्त करें तो उत्पादनके आँकड़ोंमें और भी वृद्धि दिखाई दे। ये आँकड़े बताते हैं कि खादी प्रवृत्ति जीवित है और बढ़ती जा रही है। लेकिन जब हम अपने ध्येयकी ओर दृष्टिपात करते हैं तो हमें उपर्युक्त आँकड़े तुच्छ लगते हैं। फिर भी यदि इन तुच्छ आँकड़ों में सच्चा बीज होगा और उसे ठीक पानी मिलता रहेगा तो उसके चेतन होने में तनिक भी समय नहीं लगेगा। कठलालमें लोग सात आने गजवाली स्थानीय खादी न लें और तथाकथित मिलकी खादीका प्रयोग करें, यह बात आश्चर्यजनक कही जायेगी। इसकी सूक्ष्म जाँच होनी चाहिए और इस रोगका इलाज होना चाहिए।

खादीका काम पौष्टिक खुराकके-जैसा है, परन्तु पौष्टिक खुराककी तरह ही उसका स्वाद जीभके लिए नहीं है। उसका स्वाद तो उससे मिलनेवाले पोषण में ही है। खादी जितनी ज्यादा तैयार होगी, उतना ही हिन्दुस्तान पुष्ट होगा। इसमें अजीर्ण तो हो ही नहीं सकता। इसमें कार्य करनेवालेको तात्कालिक परिणाम बहुत कम लग सकता है, लेकिन जैसे आमका वृक्ष बड़ा होनेपर हजारों फल देता है उसी तरह धैर्यपूर्वक कार्य करनेवाले सेवकको अपने छोटे-से दीख पड़नेवाले काममें से अन्तिम अत्युत्तम परिणाम देखनेका सौभाग्य अवश्य ही मिलेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-२-१९२६
 
  1. विवरणका अनुवाद यहाँ नहीं दिया गया है।