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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

का अनुभव हो रहा है कि पिछले कुछ समय से और आजकल भी दूसरे धर्मोके प्रति सहिष्णुता से काम लेनेकी प्रवृत्ति दिखाई दे रही है और कुछ मिशनरी यह भी चाह रहे हैं कि ईसाई भारतीयों को फिरसे अपने पूर्वजोंवाली सादगी अपनानी चाहिए और हर भारतीय चीजको हेय दृष्टिसे देखनेकी प्रवृत्ति छोड़ देनी चाहिए।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४१०४) की फोटो-नकलसे।

२४. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

साबरमती आश्रम
१७ फरवरी, १९२६

प्रिय मोतीलालजी,

आपका पत्र मिला । मैं जानता हूँ कि मेरा बीमार पड़ जाना मेरे लिए शर्मकी बात है। अब मैं दुगनी सावधानी बरत रहा हूँ। सालके अन्ततक अपनेको पूरी तरह स्वस्थ कर लेनेके लिए मैं कुछ भी उठा नहीं रखूंगा। और अगर आपके पास होमियोपैथी की कोई ऐसी गोलियाँ हैं, जिनसे पूरा-पूरा लाभ होना निश्चित है और जो मुझे ५६ वर्षके वृद्धसे २६ वर्षका नौजवान बना सकती हों तो वे गोलियाँ मुझे भेज दीजिए; आप जितनी गोलियाँ खानेको कहेंगे, मैं रोज खाया करूँगा!

मुझे बड़ी खुशी हुई कि जवाहरलाल और कमला जा रहे हैं और उनके साथ स्वरूप और रणजीत भी। मुझे इस बात से कोई अचम्भा नहीं हुआ कि कृष्णा भी पीछे नहीं रहना चाहती। मैं आशा करता हूँ कि किसी-न-किसी तरह उसके लिए भी गुंजाइश निकाली जा सकेगी ताकि उसे भी जितना हो सके उतनी सैर करनेका मौका मिल जाये। इस यात्रासे मैं बड़े परिणामोंकी आशा करता हूँ, न केवल कमलाके लिए वरन् जवाहरलालके लिए भी।

हाँ, मैंने इस तथ्यपर अवश्य गौर किया कि आप वाइसराय और दोनों सदनोंके नेताओंके बीच हुई बातचीत में उपस्थित थे और इस बातकी मुझे खुशी है कि आप उसमें थे।

यदि विधानसभाकी सभी कमेटियोंको छोड़ना होगा तो मैं समझता हूँ कि स्कीन कमेटीको[१] भी छोड़ना होगा। आपने जिस प्राविधिक भेदकी तरफ ध्यान दिलाया है, वह भेद है अवश्य, लेकिन हमारे कामके लिए वह काफी नहीं होगा; यद्यपि में व्यक्तिगत रूपसे आपके स्कीन कमेटी छोड़नेका विचार नापसन्द करता हूँ।

 
  1. जो इंडियन सैंडहर्स्ट कमेटीके नामसे भी विदित है। इसकी नियुक्ति भारत में एक सैनिक कॉलेज खोलनेके प्रश्नपर विचार करनेके लिए १९२५ में हुई थी। सर एन्ड्यू स्कीन इसके अध्यक्ष थे।