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२६. पत्र : एक मित्रको

साबरमती आश्रम
१७ फरवरी, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरी कामना है कि आपके अखबारको दीर्घ जीवन प्राप्त हो और जैसे-जैसे दिन बीतें, वह खादी, अस्पृश्यता निवारण, साम्प्रदायिक एकता और अहिंसा तथा सत्यका दृढ़ता से पालन करनेपर अधिकाधिक जोर दे। पाँच सालका यह बच्चा [अखबार] अहिंसा और सत्यका पदार्थपाठ प्रस्तुत कर रहा है न!

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४१०७) की माइक्रोफिल्मसे।

२७. पत्र : वी० वी० दास्तानेको

साबरमती आश्रम
१७ फरवरी, १९२६

प्रिय दास्ताने,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम क्या चाहते हो—जिन २८ सज्जनोंके नाम तुमने मेरे पास भेजे हैं, उन सबको मैं खुद ही पत्र लिख दूँ या यह कि मैं श्रीयुत सुमंतको यह बताते हुए पत्र लिख दूँ कि में क्यों नहीं आ पाया हूँ? देवदास मेरे साथ नहीं है। वह देवलाली में मथुरादासकी सेवा-परिचर्या कर रहा है। यह विचार काफी अच्छा है कि जिन जिलोंमें मैं दौरा करनेवाला था, वहाँका दौरा एक दल करे। वह दल खुद मेरा सन्देश ले जा सकता है। मैं नहीं जानता कि मणिलाल कोठारी कब लौटेंगे। अप्पा साहबने मुझे पत्र लिखा था और खादी प्रदर्शनीके सम्बन्धमें उनके विचारका अनुमोदन करते हुए मैंने जवाब लिख दिया है। मैं नहीं समझता कि ३०० रुपये के प्रस्तावित अनुदानके सम्बन्ध में कोई कठिनाई होगी।

निश्चय ही तुम पहले से समय तय करके मुझसे मिलने यहाँ आ सकते हो। मैं आजकल ज्यादा काम नहीं करता। इसलिए तुम जब चाहो आ सकते हो। तुमने जो पत्र लिखनेको कहा है, वह तुम्हारा उत्तर मिलनेपर ही लिखूँगा।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४१०८) की फोटो-नकलसे।