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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मगर अभी उसके लिए उपयुक्त समय नहीं आया है। पहले तो उन्हें तमाम कूटनीतिक उपायोंको आजमाकर देख लेना है और वे ऐसा कर भी रहे हैं। अभी उन्हें भारत सरकार संघ-सरकारके साथ जो वार्ता चला रही है, उसके नतीजेकी राह देखनी चाहिए और जब वे सभी रास्ते आजमाकर देख लें, लेकिन तब भी इस कठिनाईसे नहीं निकल पायें, तब समझना चाहिए कि अब सत्याग्रह करनेका बिलकुल उचित प्रसंग उपस्थित हो गया है। उस हालत में पीछे हटना कायरता होगी। और विजय तो निश्चित मानिए। दुनियाकी कोई भी ताकत किसीसे उसकी मर्जीके खिलाफ कुछ नहीं करवा सकती। सत्याग्रह इस महान् नियमके बोधका सीधा परिणाम है और उसका इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि उसमें कितने लोग शामिल हैं।

सत्याग्रहकी शर्तें अनुल्लंघ्य हैं। उनमें अपवादके लिए कोई गुंजाइश नहीं है। उसमें किसी प्रकारकी हिंसा नहीं होनी चाहिए। उसमें एक न्यूनतम माँगका आग्रह करके चलना चाहिए—ऐसी न्यूनतम माँग, जिसमें कोई कमी नहीं की जा सकती हो और जो किसी भी विवेकशील और निष्पक्ष व्यक्तिको ठीक लगे। हो सकता है, हम न्यायतः बहुत-सी चीजोंके हकदार हों, लेकिन सत्याग्रह ऐसी ही चीजोंके लिए किया जाता है, जिनके बिना आत्मसम्मान, या दूसरे शब्दों में सम्मानपूर्ण ढंगसे जी सकना असम्भव हो।

उसमें कितनी कीमत चुकानी पड़ सकती है, इसका भी पूरा अन्दाजा रखना चाहिए। सत्याग्रह मात्र कुछ कर दिखानेके साहसके कारण या आजमाइशी तौरपर नहीं किया जा सकता, यह तो व्यक्तिको भावनाकी तीव्रताका मापदण्ड है । इसलिए सत्याग्रह उसी हालत में किया जाता है, जब उसके बिना काम न चले, वह अनिवार्य हो जाये। इसके लिए, अर्थात् सत्यके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े, कम है। जब सफलता की कोई आशा नहीं रहती, तब भी इसमें सफलता मिल जाती है। सत्याग्रह मानवीय सहायतामें विश्वास रखकर नहीं किया जाता, वह तो ईश्वर और उसके न्यायमें अपरिमित आस्थाके बलपर ही किया जाता है। ईश्वर बड़ा दयालु भी है और बहुत कठोर भी। वह जब हमारी परीक्षा लेने बैठता है तो हमारी कष्ट-सहनकी क्षमताको अन्तिम बिन्दुतक परखकर छोड़ता है, लेकिन वह इतना दयालु भी है कि हमारी परीक्षा इस हदतक नहीं लेता कि हम टूट जायें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १८-२-१९२६