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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
स्वास्थ्यके हकमें आवश्यक हो सकता है। ऐसे ही कारणसे, जिस व्यक्तिके नैतिक दोषोंसे समाजको खतरा हो, उस व्यक्तिको समाजसे अलग करके रखना आवश्यक हो सकता है; लेकिन लाल बुखारसे बीमार किसी व्यक्तिको खसरे, क्षय और कुष्ठसे पीड़ित बहुत-से लोगोंके साथ बन्द करके उसकी बीमारी ठीक करनेकी कोशिश करना उतना ही बेतुका और शरारत-भरा काम होगा, जितना कि किसी चोर या ठगको दूसरे चोरों और ठगोंके साथ बन्द करके उसकी चोरी या ठगोकी आदत छुड़ाने की कोशिश करना।

इस उद्घोषणा के बाद तो कोई भी उनसे यही अपेक्षा करता कि अब वे बंगालमें जेल-सुधारकी दिशा में किये गये या किये जानेवाले प्रयत्नोंका वर्णन करेंगे। किन्तु, उसके बदले बंगालके गवर्नर महोदयने इंग्लैंड में मानवतावादी संगठनों द्वारा किये गये दो सफल प्रयत्नोंके दृष्टान्त दिये और कहा:

अब आप यह पूछ सकते हैं कि मैं आपके सामने आज इसी विषयपर क्यों बोला। कारण यह है कि यह एक ऐसा काम है, जिसे कोई भी सरकार नहीं कर सकती। इस प्रकारके कार्यों में दखल देकर तो सरकारें सिर्फ बाधा डालती हैं और काम बिगाड़ती हैं। यह काम तो उन्हीं लोगोंको करना चाहिए, जिन्हें मनसे इसे करने की प्रेरणाका अनुभव हो।

इस प्रकार उन्होंने अपनी सरकार और तमाम सरकारोंको इस अत्यावश्यक सुधारके दायित्वसे मुक्त कर दिया और यह जिम्मेदारी समारोहमें उपस्थित रोटरी क्लबके सदस्योंके विशाल और "आदर्शवादी" कंधोंपर डाल दी।

किन्तु, एक अनुभवी कैदीके नाते मेरा विश्वास है कि लॉर्ड लिटन जो सुधारकार्य अपने श्रोताओंसे हाथमें लेनेकी अपेक्षा रखते हैं, वह वास्तवमे सरकारको शुरू करना चाहिए। मानवतावादी व्यक्ति और संगठन उसमें सहायता-भर कर सकते हैं। अभी तो जो स्थिति है, उसमें मानवतावादी कार्योंमें प्रवृत्त लोग अगर कुछ करते हैं तो सबसे पहले उन्हें जेलोंमें चलनेवाली शरारतोंको दूर करना होगा। जेलोंका वातावरण कैदियोंकी अपराधवृत्तिको और भी उभार देता है और निर्दोष कैदी भी वहाँ यह सीख जाते हैं कि अपराध करके कैसे छिपाया जाता है। मैं मानता हूँ कि मानवतावादियों द्वारा किये गये प्रयत्नोंसे जेलोंमें चलनेवाली बुराइयोंका निवारण नहीं हो सकता। जब लॉर्ड लिटनने अपने भाषण के प्रारम्भमें "हमारी दण्ड-संहिताका आधार प्रतिशोध न हो, बल्कि उसके स्थानपर सुधार हो", यह बात कही, तब निश्चय ही यह प्रकट तथ्य उनके ध्यान में रहा होगा। लेकिन, स्पष्ट है कि अपना भाषण समाप्त करते समय वे यह बात भूल गये कि उन्होंने अपनी दण्ड-संहिताको इस सुधारका आधार बनाने का मंशा जाहिर किया था; और चूँकि उन्होंने यह महसूस किया कि वे अपनी सरकारको ऐसे किसी सुधारका श्रेय देनेकी स्थिति में नहीं हैं, इसलिए उन्होंने भाषण समाप्त करते हुए कह दिया कि यह सुधार करना सरकारका काम नहीं है।