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पाँच हजार मील दूर

लॉर्ड लिटनने ठीक ही कहा है कि सजा तो विशुद्ध रूपसे समाजकी सुरक्षाको ध्यान में रखकर देनी चाहिए। अगर ऐसा है, तब तो सिर्फ नजरबन्दी ही काफी होनी चाहिए और किसीको नजरबन्द भी तभीतक रखना चाहिए जबतक कि ऐसा माननेका पर्याप्त आधार न हो कि उस व्यक्तिकी बुरी आदतें दूर हो चुकी हैं या जबतक उसके सदाचरणके बारेमें कोई जमानत न मिल जाये। कैदियोंका समुचित वर्गीकरण, मानवीय दृष्टिकोणसे उनके बीच कामका बँटवारा, अच्छे वार्डर रखना, कैदियोंको वार्डर बनानेका चलन समाप्त कर देना, इन तमाम बातों और इसी तरहके जो दूसरे बहुत-से परिवर्तन आसानीसे सुझाये जा सकते हैं, उनको लागू करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती।

खुद लॉर्ड लिटन द्वारा प्रस्तुत कसौटीके अनुसार मुकदमा चलाये बिना राजनीतिक कैदियोंको नजरबन्द रखना और उनके साथ वैसा दुर्व्यवहार करना, जैसाकि उनके साथ हुआ बताया जाता है, बिलकुल गलत है। आशा करनी चाहिए कि परमश्रेष्ठ अपनी जेलोंके प्रशासन में अपने उक्त प्रशंसनीय मानदण्ड लागू करेंगे। और यदि ऐसा हुआ तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्हें अनेक आश्चर्यजनक बातें सूझेंगी उन्हें ऐसे कई सुधारोंका दर्शन होगा जिन्हें मानवतावादी लोगोंकी अपेक्षा उनकी सरकार कहीं ज्यादा आसानीसे कर सकती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १८-२-१९२६

३३. पाँच हजार मील दूर

अभी हाल में विधानसभा में भारतीय अपीलोंकी सुनवाईके लिए प्रिवी कौंसिल में दो अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त करने के प्रस्तावपर जो बहस हुई, उसने इस विवादको फिरसे जीवित कर दिया है कि अपीलकी यह अन्तिम अदालत कहाँ स्थित होनी चाहिए। आज हम जिस व्यामोहमें पड़े हुए हैं, अगर वह व्यामोह नहीं होता तो हम बड़ी आसानीसे देख सकते कि न्याय प्राप्त करने (या कि खरीदने?) के लिए पाँच हजार मील जाना कितना निरर्थक है और यह व्यवस्था कितनी दोषपूर्ण है। दलील यह दी जाती है कि अगर न्यायाधीशोंको यहाँ, मान लीजिए, दिल्ली में अपीलोंकी सुनवाई करनी पड़ती तो वे मुकदमोंके फैसले उतनी तटस्थता और निष्पक्षतासे नहीं कर पाते, जितनी तटस्थता और निष्पक्षता से इस सुशोभन दूरीपर बैठे रहकर करते हैं। किन्तु, जरा-सा सोचनेसे ही यह दलील बिलकुल खोखली दिखाई देने लगती है। क्या लन्दनके गरीब लोगोंकी प्रिवी कौंसिल दिल्ली में होनी चाहिए? और फिर फ्रांसीसियों और अमेरिकियोंको क्या करना चाहिये? क्या परस्पर कोई प्रबन्ध करके फ्रांसीसियोंको अपनी अपीलकी अन्तिम अदालत अमेरिकामें स्थापित करनी चाहिए और अमेरिकियोंको फांसमें? अगर भारत स्वतन्त्र देश होता तो फिर हम क्या करते? या कि भारत एक अपवाद है, जिसके साथ विशेष कृपापूर्ण