पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहे तो वह इस सारे कारोबारको खरीदनेका प्राथमिक अधिकार आपको दे और यदि आप उस अधिकारका प्रयोग न करें तो उसे बन्द करते समय बची रकममें से आपका जितना हिस्सा आपके द्वारा लगाई गई १०,००० रुपयेकी रकमके अनुपातसे निकले उतना आपको दे दे। मैं दो वर्ष बाद उस रकमकी वापसीकी आपकी शर्तको ठीक नहीं मानता। आप प्रतिवर्ष जो दान करते हैं, यदि उसकी अवधि दो वर्षकी निश्चित करना चाहें तो मैं इसे तनिक भी अनुचित न मानूँगा। लेकिन मैं आप दोनोंसे ऐसी आशा अवश्य रखता हूँ कि जिस कार्यको आपने अभीतक अपना समझकर चलाया है उसे स्थायी बनानेके लिए आप, जबतक वह सुव्यवस्थित रूपसे न चलने लगे तबतक उसमें सहायता करते रहें और मैं यह मानता और चाहता हूँ कि अब जबकि आप अपने निजी कार्यको अधिक सफल बनाना चाहते हैं तब इसके फलका लाभ भी कार्यालयको विशेष रूपसे मिले। अमरेलीका खादी-कार्यालय काठिया- वाड़की सबसे बड़ी खादी प्रवृत्ति है। इसके लिए पर्याप्त उद्योग किये गये हैं, धन खर्च किया गया है और उसका काम भी अच्छी तरह जमा हुआ है। उसकी आवश्यकता के बारेमें सन्देहकी कोई गुँजाइश नहीं है। यदि यह कार्यालय बन्द हो जायेगा तो काठियावाड़ में चलनेवाली खादीकी प्रवृत्तिको बड़ा धक्का पहुँचेगा।

इस सबपर विचार करनेके बाद आप दोनों जिस निश्चयपर आयें उससे मुझे अवगत करें।

आपके दानके बारेमें मेरी सलाह तो यह है कि जो पैसा बचा है, उसे आप मुझे भेज दें। उसे अन्त्यजोंके अथवा खादी कार्यमें इस्तेमाल करनेका इरादा है। जहाँतक मुझसे बन पड़ेगा वहाँतक मैं इस रकमका उपयोग मकान बनानेके लिए नहीं करूँगा, लेकिन इतना अवश्य चाहूँगा कि आप मुझे उसके लिए वचनबद्ध न करें। चूँकि मैं स्वयं बाहर नहीं जाता; इसलिए आपके पास रखे इस पैसेका उपयोग करना चाहता हूँ।

गुजराती प्रति (एस० एन० १०८९३) की फोटो-नकलसे।

४१. विधवा-विवाह

एक विधवा बहन लिखती है :[१]

लेखिका बहनको यह पत्र शोभा देता है। पर इससे विधवा बहनोंके प्रश्नका निपटारा नहीं हो सकता। जब बाल-विधवाको धर्म-जैसी वस्तुका ज्ञान नहीं हो सकता, तब विधवा-धर्मकी तो हम बात ही कैसे कर सकते हैं? धर्मके पालनमें धर्मका ज्ञान निहित है। क्या हम कह सकते हैं कि एक बालक, जिसे झूठ-सचका कोई ज्ञान नहीं

 
  1. इस पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र लेखिकाने इसमें लिखा था कि मेरी समझमें यह बात नहीं आती कि आप बाल-विधवाओंको पुनर्विवाहकी स्वतन्त्रता देनेकी हिमायत क्यों करते हैं, क्योंकि परम्परासे उनके लिए जिस प्रकारके संयमी जीवनका विधान है, उससे उन्हें वासनाओंके दमनमें सहायता मिलती है, और इसलिए वह उनके लिए आत्मोत्थानकारी है।