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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शुद्ध वैधव्य रमाबाई रानडेका था। आज बासन्ती देवीका[१] वैधव्य भी वैसा ही है। ऐसा वैधव्य हिन्दू समाजका अलंकार है; वह इस वैधव्यसे पुनीत होता है। बाल-विधवाओंके कल्पित वैधव्यसे तो हिन्दू-समाज पतित होता जाता है। प्रौढ़ विधवाओंका कर्त्तव्य है कि वे अपने वैधव्यको सुशोभित करते हुए बाल-विधवाओंका विवाह करनेके लिए कटिबद्ध हों और हिन्दू समाजमें इस प्रथाका प्रचार करें। उन बहनोंको जो उपर्युक्त पत्र लिखनेवाली बहनके सदृश्य विचार रखती हैं, अपने इस विचारको सुधार लेना चाहिए कि बाल-विधवाओंका वैधव्य कायम रखनेमें धर्मकी रक्षा होती है। मैं जिस निर्णयपर पहुँचा हूँ उसका कारण बालिकाओंका दुःख नहीं है, बल्कि इसका कारण है मेरे हृदय में उत्पन्न उस विषयसे सम्बन्धित सूक्ष्म धर्म-विचार, और मैंने यहाँ उसीको प्रदर्शित करनेका प्रयत्न किया है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-२-१९२६

४२. मौन-सेवा

सच्ची सेवा वही है जिसके बारेमें संसारको मालूम हो भी तो वह केवल उसके परिणामसे ही मालूम हो। सेवक अथवा सेविकाको इस बात की कामना स्वप्नमें भी नहीं होती कि उसका नाम प्रकाश में आये। इस तरहको सेवा हिन्दुस्तान में किसी-किसी स्थान में हो रही है। इसका लाभ अन्य कार्योंकी भाँति खादीको भी मिल रहा है। ऐसी एक सेवाका उदाहरण एक पत्रमें अभी-अभी मेरी दृष्टिमें आया है। थोड़े-से ही लोग जानते हैं कि बम्बईमें कुछ बहनें खादीका काम कर रही हैं। उनकी देख-रेखमें कुछ कक्षाएँ चलती हैं और उनकी मार्फत गरीब बहने आजीविका प्राप्त करती हैं। इनमें से एक कक्षा सेवासदनमें है, जिसमें ५५ लड़कियाँ काम करती हैं। दूसरी कक्षा कांग्रेस भवनमें चलती है; उसमें ६५ लड़कियाँ है। सारस्वत भवनमें ३५ लड़कियाँ हैं। एक कक्षा मझगाँवमें है। उससे मुसलमान बहनें लाभ उठाती हैं। इस कक्षाकी लड़कियोंकी संख्या उपर्युक्त पत्रमें नहीं दी गई है। सेवासदन और कांग्रेस भवनकी कक्षाओंसे मुख्यतया पारसी लड़कियाँ लाभ उठाती हैं। सारस्वत भवनमें कर्नाटकी बहनें हैं और अब भूलेश्वरमें गुजराती बहनोंकी सुविधाके लिए एक कक्षा चलानेकी व्यवस्था की जा रही है। यदि इसी ढंगसे अन्य स्थानों में भी काम किया जाये तो कितनी ही और गरीब बहनोंको सहज ही सहायता मिल जाये।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २१-२-१९२६
 
  1. चित्तरंजन दासकी पत्नी।