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४३. टिप्पणी

'गांधी-शिक्षण'

भाई नगीनदास अमूलखरायने कई वर्ष पहले इस नामकी एक पुस्तक प्रकाशित की थी। इसमें १३ भाग और २००० से ज्यादा पृष्ठ हैं। इसमें उन्होंने उनके हाथ मेरे जो लेख आये उनको विषय-क्रमसे दिया है। पुस्तकके एक-दो भाग में पढ़ गया हूँ और उससे उनकी मेहनत और सावधानीका अन्दाजा लगा सकता हूँ। मेरा विश्वास है कि जिन लोगोंको मेरे लेखोंसे बहुत प्रेम है, यह पुस्तक उनके लिए सहायक सिद्ध होगी। इस पुस्तकको प्रकाशित करनेमें भाई नगीनदास कोई आर्थिक लाभ प्राप्त नहीं करना चाहते थे और न उन्होंने प्राप्त किया ककी अनेक प्रतियाँ। उस अभी उनके पास पड़ी हैं। उसकी मूल कीमत ८ रुपये १० आने है। किन्तु उन्होंने अब वह घटाकर सामान्य पाठकके लिए ४ रुपये १० आने कर दी है। लेकिन वे छात्रावासों, पुस्तकालयों, आश्रमों, अन्य सार्वजनिक संस्थाओं तथा गरीब विद्यार्थियोंको देशमें डाकखर्चका १ रुपया और विदेशोंमें डेढ़ रुपया भेजनेपर अपनी पुस्तक पूरे १३ भाग भेजनेके लिए तैयार हैं। जो मेरे लेखोंको पुस्तक रूपमें प्राप्त करना चाहें उन्हें भाई नगीनदास अमूलखरायको ६, सुखड़वाला बिल्डिंग, हॉर्नबी रोड, फोर्ट, बम्बई—१ के पतेपर लिखना चाहिए।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २१-२-१९२६

४४. पत्र : डी० हनुमन्तरावको

साबरमती आश्रम
२१ फरवरी, १९२६

प्रिय हनुमन्तराव,

कुछ पत्र, जो बहुत पहले ही आ चुके थे, निपटानेके लिए मुझे अब दिये गये हैं। इस फाइलमें मुझे तुम्हारे दो पत्र मिले हैं, जो जनवरीमं आये थे। मेरी बीमारीके कारण और फिर स्वास्थ्य-लाभके लिए आराम करने देनेके खयालसे ये अबतक मुझे नहीं दिये गये थे।

आश्रमके सम्बन्धमें मैंने कल कृष्णको लिख दिया है। श्री रुस्तमजी रहे नहीं, सो उस जरियेसे अब हमें कुछ नहीं मिल रहा है। अखिल भारतीय चरखा संघके पास जो पैसा था, वह भी लगभग खुट चुका है। इसलिए जबतक और धन संग्रह