पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं हो जाता, तबतक कृष्णको कुछ भेज पाना सम्भव नहीं होगा। यह दुःखकी बात है, लेकिन फिलहाल लाचारी है।

आपने मुझे दो मित्रोंके सम्बन्धमें लिखा है। मैं नहीं जानता कि उनके लिए अभी तुरन्त क्या किया जा सकता है। अभी तो आश्रम जरूरतसे ज्यादा भरा हुआ है और मैं समझता हूँ कि जबतक मैं यहाँ हूँ, ऐसा ही भरा रहेगा। मैं कुछ इमारतें और बनवानेकी बातपर गम्भीरता से विचार कर रहा हूँ, फिर भी यह सोचनेकी बात है कि यदि मुझे आश्रममें स्थायी रूपसे केवल इसी साल रहना है, तो क्या वैसा करना मुनासिब होगा। सिर्फ थोड़े समयके कामके लिए नये कमरे बनवानेसे क्या लाभ, क्योंकि मेरे यहाँसे निकलते ही शायद नवागन्तुक लोग भी चले जायेंगे। तो फिर वे मित्र लोग क्या इस सालतक प्रतीक्षा करेंगे? मैं जानता हूँ कि यह लम्बी अवधि है, लेकिन मेरी समझमें नहीं आता कि इसके अलावा और मैं क्या कर सकता हूँ? क्या तुम्हारा कोई सुझाव है? मैं उन्हें खुद कुछ नहीं लिख रहा हूँ, बल्कि तुमपर ही छोड़ता हूँ कि जो जरूरी हो, करो।

और अब लो खुराककी बात। हम लोग जो आहारमें सुधारके हामी हैं, अपनी बात प्रमाणपूर्वक और बहुत शास्त्रीय पद्धतिसे नहीं कहते। मैं नहीं समझता कि नमकका शारीरिक प्रक्रियापर जो 'प्रभाव'[१] पड़ता है, उसके बारेमें हमारे विचार सचमुच बिलकुल ठीक या किसी भी तरहसे पूर्ण हैं। ऐसा नहीं है कि डाक्टरोंकी स्थिति इस मामले में बहुत ज्यादा अच्छी है, लेकिन उनके बीच कुछ ऐसे वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने निःसन्देह बड़ा शोध किया है और इस बातके बहुत ज्यादा प्रमाण मिले हैं कि नमक भोजनका बहुत आवश्यक तत्त्व है। चूँकि मुझपर उसका कोई बुरा असर नहीं पड़ रहा है, इसलिए उन डाक्टरोंकी रायपर पुनर्विचार करना मैं उचित नहीं समझता, जिनके लिए मेरे मनमें बड़ी श्रद्धा है। नमक त्यागनेका आध्यात्मिक महत्त्व निःसन्देह बहुत बड़ा है और उसके सम्बन्धमें मैंने आहार-विषयक अपनी पुस्तिकामें जो कुछ लिखा है, उसमें मैं कुछ भी संशोधन करना नहीं चाहता। लेकिन शरीरपर नमकके प्रभावके सम्बन्धमें मेरी मान्यता हिल गई है। यदि मैं जवान होता तो मैं चिकित्सा शास्त्रका अध्ययन करनेकी कामना पूरी करता और तब उस शास्त्रकी रीतिसे अपने निष्कर्षोंकी पुष्टि करता।[२] लेकिन अब तो यह काम भावी सुधारकोंके लिए ही छोड़ना होगा। वैसे भी मैं अक्सर नमक छोड़ देता हूँ। लेकिन धार्मिक दृष्टिसे नमक त्यागनेकी आवश्यकताकी प्रतीति कराने के लिए तुमने जो दलीलें दी हैं, उनसे ज्यादा सबल दलीलें तुम्हें मुझे देनी होंगी।

समुद्रके बारेमें तुम्हारी दलील स्पष्ट ही गलत है। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि दुनियाका तीन चौथाई हिस्सा अथाह समुद्रसे ढँका है और विज्ञानके इस

 
  1. यहाँ साधन-सूत्रमें एक शब्द छूट गया जान पड़ता है। सन्दर्भका ध्यान रखते हुए अनुवादमें 'प्रभाव' शब्दका प्रयोग किया गया है।
  2. साधन-सूत्र में इस वाक्यमें कुछ ऐसे शब्द आये हैं, जिनका कोई निश्चित अर्थ नहीं लगता। अनुवादमें उन्हें छोड़ दिया गया है।