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हमारा अपमान

वर्णन किया है, उन्हें रुई मुहैया करनेमें अपना पूरा योगदान दे। यह काम वह दो तरहसे कर सकता है: या तो खुद ही ऐसे भण्डार चलाये या फिर अपने हिस्सेकी रुई अखिल भारतीय चरखा संघको भेज दे, जो उसे कातनेवालोंतक पहुँचानेकी व्यवस्था करेगा। और फिर उसे इस तरह काते गये सूतसे बुनी सारी खादीके उपयोगके लिए भी तैयार रहना चाहिए और यदि उसकी इच्छा हो तो इस मुख्य कर्त्तव्यके साथ इस दिशामें उपयोगी अन्य कार्य भी वह जोड़ सकता है, पर यह बुनियादी कर्त्तव्य तो उसे पूरा करना ही चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-२-१९२६

५४. हमारा अपमान

दक्षिण आफ्रिकाके डॉ० मलानका प्रस्ताव और भारतके वाइसराय द्वारा उसपर अन्तिम रूपसे दी गई स्वीकृति हमारे लिए अपमानका एक कड़वा घूँट है। दक्षिण आफ्रिकाकी संघ सरकारने एक प्रवर समिति नियुक्त कर दी है, जो सिद्धान्तके सम्बन्धमें और तफसीलके बारेमें भी गवाहियाँ लेगी। डॉ० मलानने इस समितिको चार शर्तोंकी काँटेदार झाड़ियोंसे घेर दिया है। वे शर्तें इस प्रकार हैं: इस समितिके सामने भारत सरकारकी ओरसे सिर्फ पॅडिसन शिष्टमण्डल ही गवाही दे; इस गवाहीमें ऊपरसे योग देने के लिए भारतसे कोई और शिष्टमण्डल, कोई भी "आन्दोलनकारी"—यह डॉ० मलानका शब्द है—नहीं भेजा जाये; प्रवर समिति पहली मार्च या उससे पहले अपनी रिपोर्ट दे दे; और विधेयकको संघ-संसदके इसी सत्रमें अन्तिम रूपसे निबटा देनेके लिए उसपर कार्रवाई शुरू की जाये।

मेरे विचारसे, कोई भी स्वतन्त्र राष्ट्र इनमें से कोई शर्त मंजूर नहीं कर सकता। पैडिसन शिष्टमण्डल कोई समझौता वार्ता करने नहीं, बल्कि सिर्फ तथ्य इकट्ठा करने गया था। अगर शिष्टमण्डलको समझौता वार्ता चलानी होती और गवाही देनी होती तो इससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण शिष्टमण्डल जाता। यह शर्त लगाना कि कोई भी दूसरा शिष्टमण्डल दक्षिण आफ्रिका न जाये, अपमानजनक है। और प्रकारान्तरसे लगाया गया यह आरोप कि भारत सरकार किसी "आन्दोलनकारी" को भी दक्षिण आफ्रिका भेज सकती थी, और भी अपमानजनक है। डॉ० मलानने पैडिसन शिष्टमण्डलके सम्बन्धमें जिस मालिकाना लहजेमें बातें कही हैं, वह जलेपर नमक छिड़कनेके समान है। और यह शर्त कि प्रवर समितिको अपनी रिपोर्ट पहली मार्चसे पूर्व पेश कर देनी चाहिए, इस बातकी गुंजाइश नहीं छोड़ती कि भारत सरकार या भारतीय प्रवासी उन सारे प्रमाणोंको इकट्ठा करके सुव्यवस्थित रूप दे सकें जो यह दिखानेके लिए पेश किये जा सकते हैं कि इस कानूनमें निहित सिद्धान्त १९१४ के समझौतेके विरुद्ध हैं।

प्रवर समितिकी नियुक्तिकी घोषणाके साथ-साथ यह घोषणा भी कर दी गई है कि संघ-संसदके इसी सत्रमें विधेयकपर सारी कार्रवाई पूरी कर देनी चाहिए।

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