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एक विद्यार्थीके प्रश्न

इसलिए मुझपर तो "शब्द मारक है और भाव तारक" वाली बात ही लागू होती है। दूसरा प्रश्न है :

क्या आप जाति प्रथामें विश्वास करते हैं? अगर हाँ, तो आप उसका क्या महत्त्व मानते हैं?

मौजूदा जाति-प्रथामें तो मैं विश्वास नहीं करता, लेकिन चार प्रमुख धन्धोंपर आधारित चार बुनियादी वर्गोंमें मेरा विश्वास जरूर है। आजकी असंख्य जातियाँ और तज्जनित कृत्रिम प्रतिबन्ध तथा विस्तृत विधि-विधान धार्मिक भावनाके विकास में बाधक हैं। उसी तरह ये हिन्दुओंके और इसलिए उनके पड़ोसियोंके भी, सामाजिक कल्याणमें बाधक हैं। तीसरा प्रश्न यह है:

आप क्या चाहते हैं: भारतको ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत औपनिवेशिक दर्जा दिया जाये या उसे पूर्ण स्वतन्त्रता दी जाये और वह ब्रिटेनसे अपने सारे सम्बन्ध तोड़ ले? अगर आप पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते हों तो फिर आप ब्रिटिश शासन-प्रणालीके स्थानपर किस शासन-प्रणालीको व्यवस्था करना चाहेंगे?

मैं तो ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत औपनिवेशिक दर्जेसे ही सन्तुष्ट हो जाऊँगा, बशर्ते कि यह दर्जा दिखावटी तौरपर नहीं, बल्कि सचमुच दिया जाये। मैं ब्रिटेनसे सिर्फ तोड़नेके लिए ही सारे सम्बन्ध तोड़नेकी इच्छा नहीं रखता। लेकिन अगर मेरा बस चले तो आजकी इस अस्वाभाविक और अवास्तविक स्थितिको इसी क्षण समाप्त कर दूँ, क्योंकि यह इस राष्ट्रके पूर्णतम विकासके मार्गमें बाधक बनकर खड़ी है। इसलिए मैं ब्रिटेनके साथ जिस एक मात्र सम्बन्धकी कामना करूँगा और जिसे श्रेयस्कर मानूँगा वह है, स्वेच्छापर आधारित बिलकुल स्वतन्त्र और समान साझेदारीका सम्बन्ध। किन्तु अगर ब्रिटेनके साथ हम सारे सम्बन्ध तोड़ लेंगे तो स्वभावतः भारतमें जनताकी प्रकृति और स्वभावके अनुरूप लोकतान्त्रिक शासन प्रणालीकी स्थापना की जायेगी। इसकी रूपाकृति किसी एक व्यक्तिकी इच्छासे नहीं, बल्कि बहुमतकी इच्छासे निर्धारित की जायेगी। चौथा प्रश्न इस प्रकार है:

भारतीय देशी राज्यों और देशी राजाओंके प्रति आपका क्या रवैया है?

उनके प्रति मेरा रवैया पूर्ण मैत्रीका रहा है; में उनके आन्तरिक विधान में आमूल सुधारकी इच्छा रखता हूँ। बहुत-से राज्योंकी दशा अत्यन्त दुःखद है, लेकिन सुधारका श्रीगणेश अन्दरसे ही होना चाहिए। यह एक ऐसा सवाल है, जिसके बारेमें देशी नरेशों और उनके प्रजाजनोंको आपस में राय-मशविरा करके सब कुछ तय करना चाहिए। हाँ, उनपर पास-पड़ोसके प्रबुद्ध लोकमतका जो असर पड़ता है, वह तो पड़ेगा ही। पाँचवाँ प्रश्न है:

क्या आपको यह विचार पसन्द है कि संयुक्त राज्य अमेरिकाके ढंगपर भारतका भी एक संयुक्त राज्य बनाया जाये?

यह तुलना तो कुछ खतरनाक है। जो उपाय संयुक्त राज्य अमेरिकाकी परिस्थितियों में ठीक जान पड़ता है, वह भारतकी परिस्थितियोंमें ठीक नहीं भी हो सकता