है। लेकिन अगर इस बात में सावधानी बरती जाये तो मैं समझता हूँ, अन्ततः भारतको भाषाके आधारपर गठित विभिन्न प्रान्तोंका एक स्वतन्त्र और स्वस्थ संघ ही बनाना पड़ेगा। छठा सवाल है:
- यहाँके अखबारों में छपे कई लेखोंमें ऐसा बताया गया है कि बहुत-सी बातोंपर आपका डॉ० ठाकुरसे[१] मतभेद हो गया है और अब आप उनकी
ओरसे बिलकुल विमुख हो गये हैं। क्या यह सच है? अगर सच है तो किन बातोंको लेकर यह मतभेद हुआ है?
बहुत-सी बातोंपर तो डॉ० ठाकुरसे मेरा मतभेद नहीं हुआ है। हाँ, कुछ बातोंमें हमारे बीच मतभेद जरूर है। आश्चर्य की बात तो तब होती, जब कोई मतभेद न होता। लेकिन उन मतभेदोंके कारण या और किसी कारणसे हमारे बीच तनिक भी मनमुटाव नहीं हुआ है। इसके विपरीत, हमारे सम्बन्ध सदासे अत्यन्त सौहार्दपूर्ण रहे हैं और आज भी हैं। सच तो यह है कि इन बौद्धिक मतभेदोंके कारण हमारी मैत्री और भी दृढ़ और सच्ची हो गई है। सातवाँ प्रश्न इस प्रकार है:
फिलहाल आप भारतमें क्या कर रहे हैं? क्या आपने राजनीतिक नेतृत्व और राजनीतिका त्याग कर दिया है?
इस समय तो मैं, जिसे सुअर्जित विश्राम कहा जा सकता है, उसी विश्रामका आनन्द ले रहा हूँ, और साथ ही अखिल भारतीय चरखा संघके कामको आगे बढ़ानेकी कोशिश कर रहा हूँ। इस समय अखिल भारतीय स्तरका यही एक कार्य है, जिसपर मैं ध्यान दे रहा हूँ। औपचारिक तौरपर तो मेरा राजनीतिक नेतृत्व उस वर्षकी समाप्ति के साथ-साथ खत्म हो गया, जिस वर्षके लिए मुझे कांग्रेसका अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन वास्तवमें वह मेरे जेल जानेके साथ ही समाप्त हो गया था। लेकिन, राजनीतिका जो अर्थ मैं लगाता हूँ, उसके अनुसार मैंने राजनीतिका त्याग नहीं किया है। मैं किसी और अर्थमें कभी राजनीतिज्ञ था भी नहीं। मेरी राजनीतिका सम्बन्ध आन्तरिक विकाससे है, किन्तु चूँकि उसका स्वरूप बहुत व्यापक है, इसलिए वह बाहरी जीवनपर भी बहुत असर डालती है। आठवाँ प्रश्न है:
- यहाँ मुझे रंगभेद बहुत फैला हुआ दिखाई देता है और कभी-कभी हमें अपने रंगके कारण बहुत मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं। ऐसे प्रसंगोंपर आप मुझे क्या करनेकी सलाह देते हैं? क्या यह उचित होगा कि मैं पत्र लिखकर अपने देशके लोगों को यह सब बताऊँ? या जब-कभी मुझे यहाँ सार्वजनिक रूपसे बोलनेका निमन्त्रण मिले तब खुद अमेरिकी जनतासे ही यह सब कहना ठीक होगा?
मेरी सलाह इस प्रकार है: जब आप वहाँ गये हैं तो उस पूर्वग्रहको बर्दाश्त कीजिए; लेकिन अगर किसी भी प्रकारसे वह आपके आत्म-सम्मानको ठेस पहुँचाये तो आप प्राणपणसे उसका विरोध कीजिए। जो प्रतिकूल परिवेशमें रहकर भी अपना
- ↑ रवीन्द्रनाथ ठाकुर।