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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सारी दुनियाकी प्रगतिके लिए करे। दुनियाके अन्य राष्ट्रोंकी तरह उसमें भी इस वांछनीय परिवर्तनके लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-२-१९२६

५७. पत्र : के० श्रीनिवासनको

साबरमती आश्रम
२५ फरवरी, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मुझे खुशी है कि मेरी 'आत्मकथा' आपको अच्छी लगती है और उससे आपको सहायता मिलती है। मैं आपकी इस रायका समर्थन कर सकता हूँ कि मेरे ये आन्तरिक अनुभव उन तमाम राजनैतिक प्रवृत्तियोंसे बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, जिनमें कि संयोगवश मुझे लगातार व्यस्त रहना पड़ा है। इन राजनीतिक प्रवृत्तियोंका जो-कुछ महत्त्व है वह उन आन्तरिक अनुभवोंसे ही उद्भूत है, जिन्हें याद करके मैं यथा-सम्भव बिलकुल ज्योंका-त्यों प्रस्तुत करनेका प्रयत्न कर रहा हूँ। में हर दुर्बलताको साफ-साफ बताने की कोशिश कर रहा हूँ और यह भी जतानेका प्रयत्न कर रहा हूँ कि मैंने उस दुर्बलतापर कैसे विजय प्राप्त की।

मैं आशा करता हूँ कि आपने कताईपर जितना ध्यान दिया, मालूम होता है। उससे अधिक ध्यान देंगे। चूँकि आप वैज्ञानिक हैं, इसलिए संसारके इस सर्व-स्वीकृत अनुभवकी ओर आपका ध्यान दिलानेकी जरूरत नहीं है कि जो भी काम करने योग्य है उसे हम जितनी अच्छी तरह कर सकते हैं, हमें करना चाहिए। यदि चरखा ठीक हो और तकुए अच्छे हों तो हम कातनेवालों में से बहुतेरे लोग ऐसे हैं, जो प्रति घंटे कमसे-कम ३०० गज सूत काफी आसानीसे कात लेते हैं। अबतक सबसे ज्यादा गति ९०० गज प्रति घंटेकी रही है।

हृदयसे आपका,

के० श्रीनिवासन

डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रिकल टेकनोलॉजी
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस
डाकघर

हेबल, बेंगलोर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४०७६) की माइक्रोफिल्मसे।