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६१. पत्र : प्रतापसिंहको

साबरमती आश्रम
फाल्गुन सुदी १३, १९८२, [२५ फरवरी, १९२६]

कुमार श्री प्रताप सिंहजी,

श्री देवचन्दभाई पारेख, सेठ देवीदास घेवरिया आदि कुछ भाई यहाँ आये हैं। मैंने उनसे बातचीत की है और फिलहाल तो हमने आपस में यहीं निश्चय किया है कि यदि राज्यको कोई आपत्ति न हो तो काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्का आगामी अधिवेशन अगले वर्ष पोरबन्दरमें किया जाये। इस वर्ष अधिवेशन करनेमें एक बड़ी कठिनाई यह है कि मैंने जो प्रतिज्ञा की है, उसके कारण मैं अधिवेशनमें उपस्थित नहीं हो सकता और मेरे पास आनेवाले भाइयोंको भी तथा मुझे भी ऐसा लगता है कि परिषद्ने भावनगर में जो नया स्वरूप धारण किया है, उसके स्थिर होनेतक उसमें मेरी उपस्थिति सहायक सिद्ध होगी। परिषद्को उन्नतिके लिए आवश्यक होगा तो मैं इस अधिवेशनका सभापति बननेमें आनाकानी नहीं करूँगा।

हम सबने सेठ देवीदाससे यह प्रार्थना की है कि वे स्वागत समिति के अध्यक्ष पदको स्वीकार कर लें। इस समय सारे देशमें मुख्य रूपसे कार्यकर्त्ताओंकी आवश्यकता है। देवीदास सेठकी रुचि कार्य करने में है और उन्हें चरखेमें तथा खादीमें श्रद्धा है, इसीसे मेरी निगाह उनपर जमती है। इस बारेमें नियमानुसार अन्तिम निर्णय तो स्वागत समिति के सदस्य ही करेंगे। मुझे देवचन्दभाईसे मालूम हुआ है कि अधिवेशन पोरबन्दरमें किये जानेके सम्बन्धमें माननीय राणा साहबको भी कोई आपत्ति नहीं है। तथापि अगर आप माननीय राणा साहबसे इस बारेमें अधिक स्पष्टीकरण कराने के लिए पूछताछ कर लेंगे और मुझे उनके विचारोंसे अवगत करायेंगे तो मैं आपका आभारी हूँगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (रील नं० २०) की माइक्रोफिल्मसे।

सौजन्य: गांधी स्मारक संग्रहालय, दिल्ली