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६४. पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त-सम्बन्धी प्रस्तावोंका मसविदा[१]

[२७ फरवरी, १९२६]

[केन्द्रीय विधान सभाकी बहस] के कुछ ही समय बाद में महात्माजीसे सावरमतीमें मिलने गया। मैंने देखा कि उन्हें इस विषयपर मौलवी मुहम्मद शफीका लिखा पत्र मिला है। उस पत्रपर और मुझे जो कुछ कहना था, उस सबपर पूरी तरह विचार करनेके बाद महात्माजीने बोलकर मुझसे दो प्रस्ताव लिखवाये। उनकी समझमें ये ऐसे ठीक प्रस्ताव हैं, जिनपर हिन्दुओं और मुसलमानोंको सहमत हो जाना चाहिए। उन्होंने अपने हाथसे लिखा एक पत्र भी मुझे दिया। दूसरे दिन मैंने उनको स्वराज्यवादी दलके मुसलमान सदस्योंमें प्रचारित कर दिया। वे प्रस्ताव इस प्रकार थे:

(क) निश्चय किया जाता है कि ऐसा कोई भी सुधार या समझौता जिसे कांग्रेस या स्वराज्यवादी दल स्वीकार करे, ब्रिटिश भारतके एक अविभाज्य अंगके रूपमें पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्तपर भी लागू होगा और उसी तरह लागू होगा जैसे कि सभी रेगुलेशनवाले प्रान्तोंपर होगा।

(ख) निश्चय किया जाता है कि ऐसा कोई भी सुधार या समझौता कांग्रेस या स्वराज्यवादी दल स्वीकार नहीं करेगा, जो ब्रिटिश भारतके अविभाज्य अंगके रूपमें पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्तपर उसी तरह लागू नहीं होगा जैसे कि सभी रेगुलेशनवाले प्रान्तोंपर होगा। {{left|[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दुस्तान टाइम्स, १९-३-१९२६

६५. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

[२७ फरवरी, १९२६]

प्रिय मोतीलालजी,

मैंने आपको शफी[२] साहबका पत्र दिखा दिया है। कृपया उन्हें तथा अन्य मुसलमान मित्रोंको बताइए कि मेरी रायमें, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्तके सम्बन्धमें जो प्रस्ताव किया गया है, उसका समर्थन करना स्वराज्यवादियोंके लिए गलत होगा।

 
  1. केन्द्रीय विधान सभामें सैयद मुरतजा साहब बहादुरने पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्तके सम्बन्धमें एक प्रस्ताव पेश किया था। उस प्रस्तावके बारेमें स्वराज्यवादी दलको स्थिति स्पष्ट करते हुए पंडित मोतीलाल नेहरूने एक वक्तव्य दिया। वक्तव्य में उन्होंने यह बताते हुए इन प्रस्तावोंको प्रकाशनार्थ जारी किया कि जब वे २७ फरवरीको साबरमती गये थे तब गांधीजीने उन्हें ये प्रस्ताव बोलकर लिखाये थे और अपनी लिखावट में एक पत्र भी उन्हें दिया था।
  2. मौलवी महम्मद शफी।