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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किन्तु साथ ही कांग्रेस अन्तमें स्वराज्यकी जो भी योजना स्वीकार करे, उसमें इस प्रान्तके शामिल किये जानेके किसी भी प्रस्तावका में समर्थन करूँगा। इसके लिए मैंने आपको दो प्रस्तावोंके मसविदे दिये हैं। आशा है उन्हें मुसलमान मित्र स्वीकार कर लेंगे। यदि कोई समझौता नहीं हो पाता तो मैं समझता हूँ, सबसे शोभनीय तरीका आपका इस आशयका आदेश जारी कर देना ही रहेगा कि कोई भी स्वराज्यवादी मतदानमें भाग न ले।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
हिन्दुस्तान टाइम्स, १९-३-१९२६

६६. सूत्रयज्ञ

यज्ञ तो कितने ही होते हैं। कुछ यज्ञ परोपकारके लिए किये जाते हैं तो कुछ स्वार्थके लिए। कुछ लोग तो दूसरेका बलिदान देकर स्वयं यज्ञका पुण्यफल प्राप्त करनेका वृथा लोभ रखते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि यज्ञ तो आत्मबलि देकर अर्थात् अपने ही श्रमसे किया जा सकता है। वराडके कुमार-मन्दिरके आचार्य श्री झवेरभाईने अभी हालमें एक ऐसा ही यज्ञ किया है। वे लिखते हैं:[१]

बारह महीनेमें लगभग १२ लाख गज सूत कातना कोई मामूली बात नहीं है। एक महीनेमें एक लाख गजका अर्थ है—एक दिनमें कोई ३,५०० गज सूत। यदि कोई एक घंटेमें ४०० गज लगातार कात सके तो ३,५०० गज सूत कातनेमें ८ से ९ घंटे तकका समय लगेगा। एकनिष्ठ होकर इतने घंटे रोज एक सालतक चरखा चलाने में लगाना एक महायज्ञ ही गिना जा सकता है। उपरोक्त पत्रमें ही झवेरभाई लिखते हैं: "मेरी इच्छा तो सिर्फ आत्माकी उन्नति करने और उसके लिए सर्वस्व त्याग करना पड़े तो वह भी करनेकी है।" मैं झवेरभाईको उनके इस निःस्वार्थ प्रयत्नके लिए धन्यवाद देता हूँ और यह चाहता हूँ कि वे ऐसा यज्ञ सदा ही करते रहें। इस उदाहरणको दृष्टिमें रखकर हम लोग आधा घंटा भी देशके हितार्थ सूत कातनेमें लगायें तो उससे देशको कितना लाभ हो? श्री झवेरभाईने अपने पत्र में एक भूलका संशोधन भी भेजा है। उन्होंने लिखा है, मेरे पिछले वर्षके कार्यके सम्बन्धमें 'नवजीवन' में लिखी गई टिप्पणीमें मेरे काते ३ लाख गज सूतका अंक २० के स्थानमें ६ छप गया था। इसका वजन १८ सेर था। मुझे इस भूलपर खेद है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-२-१९२६
 
  1. यहाँ पत्रका अनुवाद नहीं दिया जा रहा है। इसमें लेखककी पत्नी और ग्यारह वर्षीया साली की सहायतासे वर्ष में काते गये सूतकी मात्रा और किस्म बताई थी।