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६७. सम्राट्का गुस्सा

समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचारोंसे मालूम होता है कि सम्राट् जॉर्ज, इंग्लैंड में आजकल वहाँके उद्योगोंकी जो प्रदर्शनी हो रही है, उसे देखनेके लिए गये थे। वहाँ उन्होंने देखा कि जिस विभागमें इंग्लैंडके टाइपरायटर प्रदर्शनार्थ रखे गये हैं, उसीमें एक सरकारी कर्मचारी अमेरिकाके बने टाइपरायटरपर पत्र टाइप कर रहा है। सम्राट्को यह देखकर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने पूछा, यदि अंग्रेजी टाइपराय- टरोंकी माँग इंग्लैंड के बाहर भी होती है तो इंग्लैंडमें अमेरिकाके बने टाइपरायटर क्यों इस्तेमाल किये जाते हैं? जिम्मेदार अधिकारीने इसकी जाँच करनेकी प्रतिज्ञा की और सम्राट्को शान्त करनेका प्रयत्न किया। लेकिन वे शान्त नहीं हुए और उन्होंने कहा, इसकी जाँच मुझे स्वयं करनी होगी। अंग्रेजी टाइपरायटर बनानेवालेने कहा; यदि सरकारी दफ्तरों में अंग्रेजी टाइपरायटर दाखिल किया जाये तो मैं प्रति टाइपरायटर कमसे कम एक मनुष्यको तो अवश्य ही रोजी दे सकता हूँ—इसपर टीका-टिप्पणी करते हुए इंग्लैंडके समाचारपत्र कहते हैं कि जहाँ संसदकी लोकसभा कुछ भी नहीं कर सकी वहाँ सम्राट्का कड़ा रुख और गुस्सा काम कर जायेगा।

हमें शायद यह लगेगा कि जो इंग्लैंड सारी दुनियामें अपना माल भेजता है, वहाँ अमेरिकाके टाइपरायटरोंसे इतना द्वेष शायद अनुचित है। परन्तु यदि हम सम्राट्की दृष्टिसे विचार करें तो हमें उनका यह गुस्सा मुनासिब मालूम होगा। बचाव में यह कहा गया था कि अमेरिकाके टाइपरायटर इंग्लैंडके टाइपरायटरोंकी बनिस्वत अच्छे हैं, इसलिए सरकारी दफ्तरोंमें उनका इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन सम्राट् चतुर थे; वे समझ गये कि इस प्रकार दूसरे देशकी चीज अच्छी देखकर अपने देशकी चीज फेंकी नहीं जा सकती। दूसरे देशकी चीज अच्छी हो तो वह उसी देश में शोभा देगी। यदि सम्भव हो तो हम उतनी ही अच्छी चीज बनानेकी कोशिश करें; लेकिन यदि सम्भव न हो तो हम जैसा भी माल बना सकें, हमें उसीसे सन्तुष्ट रहना चाहिए। सम्राट्को यह दलील सहज ही सूझी होगी। जो हो; यदि हम इस घटनासे कुछ सीखना चाहें तो बहुत कुछ सीख सकते हैं। अमेरिकाके टाइपरायटर सरकारी दफ्तरों में बहुत होंगे तो एक हजारके करीब होंगे। उनको हटाकर विलायती टाइपरायटर दाखिल किये जायें तो उस टाइपरायटरके मालिककी बात यदि सच हो तो इससे एक हजार अंग्रेजोंको रोजी मिल सकती है। लेकिन यदि हम भारतीय सम्राट् जॉर्जके समान चतुर हों, अपने देशके प्रति उन्हींके समान प्रेम रखते हों और उन्हीं की तरह अपने ऊपर गुस्सा करें तो हम अपने देशके भूखों मरनेवाले एक हजार लोगोंका ही नहीं, बल्कि करोड़ों लोगोंका पेट भर सकते है। जिस चीजसे हम ऐसा कर सकते हैं, वह चीज है खादी। यदि हरएक स्त्री या पुरुष कोई विशेष प्रयास किये बिना थोड़ी किफायत करे और अपना खर्च बढ़ाये बिना खादीका ही उपयोग