पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/५२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

५०५. पत्र: गोरक्षा मण्डल, वाईको

आश्रम
साबरमती
२ अक्तूबर १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। कृपया लिखें कि रुई कितने सदस्योंको और कितनी चाहिए; यह भी बतायें कि वे कितने अंकका सूत कातते हैं। क्या वे कुशल कातनेवाले हैं क्या वे सूतकी मजबूती और समानताकी साधारण परीक्षाओंमें उत्तीर्ण हो सकते हैं? क्या वे इतने गरीब हैं कि रुई नहीं खरीद सकते? क्या वे धुनाई जानते हैं? अगर नहीं तो उनके लिए पूनियाँ कौन बनाता है? इन सबका उत्तर पानेपर ही मैं किसी निश्चयपर पहुँच सकूँगा।

हृदयसे आपका,

गोरक्षा मण्डल, वाई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९७१३) की माइक्रोफिल्मसे।

५०६. पत्र: मोतीबहन चोकसीको

[साबरमती]
भाद्रपद बदी ११ [२ अक्तूबर, १९२६][१]

चि॰ मोती,

तुम्हारा पत्र मिला। वहाँ सेवा करना तुम्हारा मुख्य धर्म है और उसमें तुम्हें पूर्ण सुख मिलेगा। अपने स्वास्थ्यकी चिन्ता रखना।

तुम्हें अपने अक्षर सुधारने चाहिए। आज मणिकी वर्षगाँठ थी। वह अपने-आप मेरे पास आकर ये तीन व्रत ले गई है, झूठ न बोलूँगी, शोर न करूँगी और सुबह चार बजे उठूँगी। बच्ची अपने व्रतोंका पालन कबतक करती है, मुझे यह देखना है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १२१३७) की फोटो-नकलसे।

 
  1. डाकको मुहरसे।