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५०७. मढडा आश्रम

मैंने लगभग एक वर्ष पहले 'नवजीवन' में[१] मढडा आश्रमके प्रबन्धकी ओर संकेत किया था, क्योंकि मेरे पास उसके बारेमें शिकायत आई थी। मढडा आश्रमके बारेमें मैंने भाई शिवजीके साथ पत्र-व्यवहार किया और उसके हिसाबको जाँच करनेके लिए प्रतिनिधि भेजा। प्रतिनिधिने हिसाबकी जाँच की; लेकिन प्रबन्धकी कुछ बहियोंको, भाई शिवजीने ऐसा कहकर दिखानेसे इनकार कर दिया कि ये निजी सम्पत्तिके सम्बन्धमें हैं।

भाई शिवजीके चरित्रके बारेमें मेरे पास भारी आरोप आये। मैंने भाई शिवजीको उनसे अवगत कराया। उसकी उन्होंने जाँच करनेकी अनुमति दी। आरोप लगानेवाले सब उत्तरदायी व्यक्ति थे। इस बारेमें भाई शिवजी स्वयं मुझसे आश्रम में मिले। उन्होंने उन आरोपोंको स्वीकार किया। इससे मुझे गहरा आघात पहुँचा। मैंने भाई शिवजीको परिषद्से त्यागपत्र देने और उनके हाथमें जो संस्था थी उसे छोड़नेकी सलाह दी। उन्होंने त्यागपत्र तो दे दिया; लेकिन संस्था नहीं छोड़ी। मैंने परिषद्को कार्यकारी-समितिके आगे भाई शिवजीके साथ हुई बातचीत रखी और मेरे मतानुसार सार्वजनिक सेवकका क्या धर्म होता है, वह समझाया। मैंने सदस्योंसे प्रार्थना की कि वे मेरी बात किसीके आगे प्रकट न करें।

मुझे एक वक्तव्य समाचारपत्रोंमें देना ही चाहिए, यह बात मैंने भाई शिवजीसे कही। उन्होंने मुझे रोका और मुझसे मिलनेकी इच्छा व्यक्त की। मैंने उनसे बातचीत की। भाई शिवजीको लगा कि मैंने उनके साथ घोर अन्याय किया है। मैंने उन्हें शान्त करनेका प्रयत्न किया; किन्तु मैं उसमें असफल रहा। वे कहते हैं कि उन्होंने जो दोष स्वीकार किये थे, वे गुस्सेमें स्वीकार किये थे। वे मानते हैं कि उनके साथ बातचीत करते समय में उत्तेजित था। मैं उत्तेजित था इससे वे भी उत्तेजित हो गये और उन्होंने उलटे-सीधे उत्तर दिये। उनकी इस मान्यताके कारण मैंने उन्हें सुझाव दिया कि मैं इस मामलेको पंचोंके आगे रखनेके लिए तैयार हूँ। यदि पंच मेरा पक्ष सुनकर मुझे भ्रमित मानें और मुझे वैसा समझा सकें तो मैं अपनी भूल सार्वजनिक रूपसे स्वीकार करूँगा और क्षमा माँगूँगा। अगर मुझे पंचोंका निर्णय मान्य न हुआ तो भी यदि वे मुझे इस बारेमें चुप हो जानेके लिए कहेंगे तो मैं चुप हो जाऊँगा।

यह बात भाई शिवजीको स्वीकार नहीं हुई। उन्होंने मुझे पंचनामा लिख भेजा जिसपर हस्ताक्षर करनेसे मैंने इनकार कर दिया। इसलिए अब अपनी प्रतिज्ञानुसार मुझे उपयुक्त तथ्य प्रकाशित करने होंगे। मेरी ओरसे भाई शिवजीके प्रति कोई अन्याय न हो, इसलिए जितना सम्भव हो सका है मैंने उतना समय दिया और उनकी दलीलको

  1. देखिए खण्ड २६, पृष्ठ ४४८-५०। शिवजी मढडा आश्रमके संचालक व व्यवस्थापक थे।