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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बाल्टियाँ साफ करना आदि-आदि करनेको तैयार हैं? क्या आप ब्रह्मचारीका जीवन व्यतीत कर सकते हैं और क्या आप गरीबीमें जीवन बितानेकी प्रतिज्ञा ले सकते हैं? क्या आपका स्वास्थ्य अच्छा है? अगर इन प्रश्नोंके आपके उत्तर सन्तोषजनक हैं, मैं कहूँगा कि फिलहाल तो आश्रममें बहुत ज्यादा लोग हैं लेकिन जैसे ही आश्रम में स्थान होगा आपको जाँचके विचारसे भरती कर लिया जायेगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत बलदेव शर्मा


"अमृतधारा"


लाहौर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९७१४) की माइक्रोफिल्म से।

५१५. शाकाहार

पत्र-लेखकका जन्म एक मांसाहारी कुटुम्बमें हुआ है। उन्होंने मांस खानेके बारेमें माता-पिताके दबावको अभीतक तो नहीं माना है; किन्तु उनका कहना है:

एक पुस्तकमें जो मेरे सामने है, स्वामी विवेकानन्दका इस विषयमें मत पढ़कर मेरा विश्वास डिग रहा है। स्वामीजी मानते हैं कि वर्तमान स्थितिम हिन्दुस्तानियोंके लिए मांसाहार आवश्यक है और वे अपने मित्रों को बिना हिचके मांस खानेकी सलाह देते हैं। वे तो यहाँतक कहते हैं—'अगर इससे तुम्हें कोई पाप भी लगे तो तुम उसे मेरे सिर डाल देना। मैं उसका फल भोग लूँगा।' में किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया हूँ। मेरी समझमें नहीं आता कि मांस खाऊँ या न खाऊँ।

दूसरेकी बातको प्रमाण माननेका ऐसा अन्धविश्वास दिमागकी कमजोरीका चिह्न है। अगर पत्र-लेखकका दृढ़ विश्वास हो कि मांस खाना अनुचित है तो फिर वे सारे संसारकी उसके विरुद्ध राय होनेपर भी क्यों डिगें ? अपने विश्वास निश्चित करनेमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए; किन्तु एक बार निश्चित कर लेनेके बाद, बड़ीसे बड़ी कठिनाई आनेपर भी दृढ़ रहना ही चाहिए।

मैंने स्वामीजीका लेख तो नहीं देखा है, किन्तु मुझे लगता है कि पत्र-लेखकने हवाला ठीक ही दिया होगा। मेरी राय सभी बखूबी जानते हैं। किसी भी देश या जलवायु और किसी भी स्थितिमें, साधारणतः जहाँ मनुष्योंके रहनेको कल्पना की जा सकती है, मेरी समझमें हम लोगोंके लिए मांसाहार करना आवश्यक नहीं है। मेरा विश्वास है कि मनुष्य जातिके लिए मांसाहार अनुपयुक्त है। अगर हम पशुओंसे अपनेको ऊँचा मानते हैं तो फिर उनकी नकल करना हमारी भूल है। यह बात अनुभवसिद्ध है कि जिन्हें आत्मसंयम इष्ट हो, उनके लिए मांसाहार अनुपयुक्त है।