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वही पुरानी दलील


किन्तु चरित्र-गठन अथवा आत्मसंयममें भोजनके महत्त्वको बहुत बड़ा स्थान देना भी गलत होगा। इनपर भोजनका प्रबल प्रभाव पड़ता है, अतः उसके सम्बन्धमें उपेक्षा न की जानी चाहिए। मगर जिस प्रकार भोजनमें किसी प्रकार संयम न रखना और सब-कुछ खाना-पीना अनुचित है, उसी प्रकार सभी धर्म-कर्मका सार भोजनमें ही मान बैठना भी, जैसा हिन्दुस्तानमें प्रायः होता है, अनुचित है। शाकाहार हिन्दू धर्मकी एक अमूल्य देन है। इसे पर्याप्त विचार किये बिना नहीं छोड़ना चाहिए। इसलिए इस भ्रमका संशोधन करना परमावश्यक है कि शाकाहारने हमें मन अथवा देहसे दुर्बल बना दिया है या हम कार्यकी दृष्टिसे निष्क्रिय अथवा जड़ हो गये हैं। हिन्दू धर्मके बड़े-बड़े सुधारक अपने-अपने जमानेके बड़ेसे-बड़े कर्मठ पुरुष हुए हैं। जैसे शंकर या दयानन्दके जमानेका कौन पुरुष उनसे अधिक कर्मशीलता दिखा सका था?

लेकिन पत्र-लेखक भाईको मेरी बातको प्रमाण नहीं मान लेना चाहिए। आहार कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसका निश्चय श्रद्धाके आधारपर करना पड़े। इसका फैसला सभीको अपने आप तर्कके आधारपर ही करना चाहिए। खासकर पश्चिमी देशोंमें शाकाहारपर विपुल साहित्य तैयार हो गया है। उसे पढ़नेसे हरएक सत्यशोधकको लाभ ही होगा। इस साहित्यके लेखकों में कई प्रसिद्ध डाक्टर भी हैं। हमें यहाँ हिन्दुस्तानमें लोगोंको शाकाहार करनेके लिए कुछ कहना आवश्यक नहीं हुआ है, क्योंकि यहाँ तो यह अबतक एक उत्तम और प्रतिष्ठित बात ही मानी जाती रही है। खैर इन भाईके समान, वे दूसरे लोग भी, जिनका मन इस विषयमें डाँवाडोल हो, पश्चिमके देशोंमें इस बढ़ते हुए आन्दोलनके साहित्यका अध्ययन-मनन कर सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-१०-१९२६

५१६. वही पुरानी दलील

एक सज्जन हम लोगोंमें फैली हुई बुराइयों तथा जिन कृषि सम्बन्धी सुधारोंको वे आवश्यक समझते हैं, उनका जिक्र करते हुए लिखते हैं।[१]

यह तो वही पुरानी दलील है। पत्र-प्रेषक महोदय यह बात भूल जाते हैं कि हिन्दुस्तानको अमेरिका और इंग्लैंडकी तरह बनानेके लिए यह जरूरी है कि शोषण करनेके लिए हम कोई अन्य जातियाँ और देश खोजें। यह स्पष्ट है कि अबतक पश्चिमी राष्ट्रोंने यूरोपके बाहर संसारके सभी देश शोषणके लिए आपसमें बाँट रखे हैं और यह भी स्पष्ट है कि अब खोजनेके लिए कोई नये देश भी बाकी नहीं हैं। जो मुल्क पश्चिमी देशों द्वारा शोषित हैं, उनमें हिन्दुस्तान सबसे बड़ा देश है। निस्सन्देह पूर्वके

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें लेखकने कहा था, हम अब आधुनिक सभ्यतासे, जिसमें जहाज, रेले, मशीनें और बड़े पैमानेपर उत्पादन सम्मिलित हैं, बच नहीं सकते। अतः हमें उसे अपना लेना चाहिए।
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