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बालपत्नियोंके आँसू

स्थानपर प्राचीन घरेलू उद्योग कताईकी स्थापना करना है। हमारा फर्ज है कि अगर हम उद्योगवादका विरोध करना चाहते हैं तो हम इस प्रकार अपने देशके प्राचीन कुटीर उद्योगको उसकी पूर्वस्थितिमें ला दें।

मुझे पूँजीका नहीं, पूँजीवादका डर है। हमें पश्चिमसे तो यही शिक्षा मिलती है कि सम्पत्तिको केन्द्रभूत न करो: यानी एक अन्य तथा अधिक भयानक प्रजातीय युद्धसे बचो। सम्पत्ति और श्रममें परस्पर विरोध होना आवश्यक नहीं। मैं ऐसे कालकी कल्पना अपने मनमें नहीं कर सकता जब कोई भी आदमी दूसरेसे अधिक धनी नहीं होगा। लेकिन मैं उस दिनकी कल्पना जरूर कर सकता हूँ जब धनिक लोग निर्धनोंको लूटकर मालामाल होनेसे घृणा करेंगे और निर्धन लोग धनिकोंसे डाह करना छोड़ देंगे। यह दुनिया कितनी ही निर्दोष क्यों न बन जाये, इसमें गरीब और अमीरका फर्क नहीं मिट सकेगा; लेकिन हम झगड़ों और कटुताको तो अवश्य ही दूर कर सकते हैं और वे हमें दूर करने भी चाहिए। ऐसे बहुतसे उदाहरण मौजूद हैं जिनमें अमीर और गरीब—परिपूर्ण मित्रताके साथ रहते पाये गये हैं। हमें ऐसे उदाहरणोंकी संख्या बढ़ानी-भर है।

भारतका भविष्य पश्चिमके उस खूनी रास्तेपर चलनेसे नहीं सुधरेगा, जिससे आज पश्चिम थका-सा मालूम होता है, बल्कि शान्तिके उस अहिंसा पथपर चलनेसे सुधरेगा जिसकी प्राप्ति केवल सादे और धार्मिक जीवनसे ही होती है। इस समय खतरा यह है कि कहीं भारतकी आत्मा नष्ट न हो जाये। उसके नष्ट होनेपर वह जीवित नहीं रह सकता। इसलिए वह आलसीके समान निरुपाय हो कर यह नहीं कह सकता कि "मैं अब पश्चिमके इस तूफानसे नहीं बच सकता।" अपनी और संसारकी भलाईके लिए उसे इस तूफानको रोकने योग्य शक्तिशाली तो बनना ही होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-१०-१९२६

५१७. बालपत्नियोंके आँसू

'बंगालकी एक हिन्दू महिला' लिखती हैं।[१]

उक्त चित्र बिलकुल यथार्थ अथवा अत्युक्तिपूर्ण है या नहीं, सो तो नहीं कहा जा सकता किन्तु बात तत्त्वतः ठीक है। मुझे इसके समर्थनमें साक्षी या प्रमाण खोजनेकी जरूरत नहीं। मैं एक चिकित्सकको जानता हूँ। उनकी डाक्टरी खूब चलती है। उनकी पहली स्त्री मर गई है। उन्होंने एक इतनी छोटी उम्रकी कन्याके साथ शादी कर ली है जो उनकी बेटी-जैसी लगती है। वे दोनों 'पति-पत्नी' की भाँति

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें लेखिकाने गांधीजीको हिन्दू समाजकी विवाहिता बालिकाओंका पक्ष लेनेपर धन्यवाद दिया था और दस-दस सालकी दो बालिकाओंके उदाहरण दिये थे, जिनमें से एकको मृत्यु पतिके अत्याचारसे हो गई थी और दूसरीको उसके पतिने वासनाको तृप्ति न करने देनेपर त्याग दिया था।