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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहते हैं। मैं एक दूसरी मिसाल भी जानता हूँ जहाँ एक ६० वर्षके विधुर शालानिरीक्षकने एक ९ वर्षकी कन्यासे विवाह किया था। हालाँकि सब लोग इस दुष्कृत्यको जानते थे और उसे दुष्कृत्य मानते भी थे, लेकिन वह अपने पदपर बना रहा और सरकार तथा जनता ऊपरी तौरपर उसकी इज्जत भी करती रही। मैं अपनी तथा अपने दोस्तोंकी जानकारीके आधारपर ऐसी और भी घटनाएँ गिना सकता हूँ।

उपरोक्त महिलाका यह कथन ठीक है कि हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंमें किसी भी कुप्रथाके विरुद्ध युद्ध करनेकी शक्ति शेष नहीं रह गई है। इसमें शक नहीं कि समाजकी ऐसी स्थितिके लिए मुख्यतः पुरुष जिम्मेवार हैं। लेकिन क्या स्त्रियाँ सारा दोष पुरुषोंके माथे मढ़कर अपनी आत्माको हल्का रख सकती हैं? क्या पड़ी-लिखी स्त्रियोंका स्त्रीवर्गके प्रति—तथापुरुषोंके प्रति भी, क्योंकि वे उनकी जननी हैं— यह कर्तव्य नहीं है कि वे सुधारका काम अपने हाथमें लें ? अगर विवाहके उपरान्त वे अपने पतियोंके हाथोंमें कठपुतलियाँ बन जायें और कम उम्र में ही हीन निकलने वाले बच्चे पैदा करने लग जायें तो वह शिक्षा जिसे वे पा रही हैं किस कामकी? वे मताधिकार प्राप्त करनेके लिए अवश्य लड़ती हैं। किन्तु इसमें न तो बहुत समय ही जाता है और न कुछ कष्ट ही होता है। वह तो उनके मनबहलावका साधनभर है। लेकिन ऐसी स्त्रियाँ कहाँ हैं जो विवाहिता और विधवा बालिकाओंके बीच काम करें और जो तबतक न स्वयं चैन लें और न पुरुषोंको लेने दें जबतक बाल-विवाह असम्भव न हो जाये और जबतक प्रत्येक बालिकामें इतना साहस न आ जाये कि वह परिपक्व अवस्था अपनी ही पसन्दगीके वरके साथ विवाह करनेके सिवा शेष दशाओंमें विवाह करनेसे इनकार कर सकें?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-१०-१९२६

५१८. इन्हें सन्तोष चाहिए

इस लेखमें वाक्पटुताकी बहार देखिए । 'स्वर्ण-सागरमें सुषुप्त' धनिकोंके ऊपर दो-एक आक्षेपोंको हटा देनेके अलावा, मैंने इसको और कहीं भी संक्षिप्त नहीं किया है।[१]

मैंने आपका १६ सितम्बरका लेख "विद्यार्थियोंका धर्म" पढ़ा। आप अनिच्छुकोंका नेतृत्व नहीं करना चाहते।...आगे आनेवाले सुदिनोंकी याद करके सूत कातना सुखदायक मालूम होता है।
इस बीच आपकी सेना दुःखी होकर अकाल पीड़ितोंके समान आधा पेट खाकर पड़ी-पड़ी जैसे-तैसे किसी प्रकार आलस्यसे जीवन बितानेपर विवश है।
चरखके लिए वायुमण्डल तैयार करनेकी दृष्टिसे कातनेमें ही सारा समय नहीं खप सकता।...मैं सोचता हूँ कि आपके मनके स्वराज्यमें लोगोंको काम
  1. अंशत: उद्धृत।