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इन्हें सन्तोष चाहिए
और भोजनके बिना सड़ना नहीं पड़ेगा। हम आपकी शर्तोपर काम करते हैं और इसलिए हमें आपसे सन्तोष माँगनका अधिकार है। मैं 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें इसके उत्तरकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ, क्योंकि जीवनका भार क्षण-क्षण बढ़ता जाता है।

ऐसा मालूम होता है कि पत्रलेखकको व्यंग-विनोदका अच्छा अन्दाज है और इसलिए उन्हें मुझसे सन्तोष पानेकी कोई खास जरूरत नहीं। लेकिन उन दूसरे अपरिवर्तनवादियोंकी जानकारीके लिए, जो शायद इन्हींकी-सी स्थितिमें हैं, किन्तु जिनमें कदाचित् इनके समान हास्यरसका सूक्ष्म ज्ञान नहीं है, मैं यह कहना चाहता हूँ कि अगर मैं किसी ताल्लुका बोर्डमें शिक्षक बनता तो, उसी स्थानपर अड़ा रहकर खद्दरका सन्देश सुनाता और उस स्थानको कोई ऐसा काम मिल जानेपर ही छोड़ता जो अपरिवर्तनवादियोंकी रुचिके अधिक अनुकूल हो; और वह भी उसी हालतमें जबकि मेरे नौकरी छोड़नेसे मेरे मालिकोंको कोई असुविधा न होती। कोई भी ईमानदार कार्यकर्ता अपने मालिकको न तो मझधारमें छोड़कर नया काम करेगा और न अपने वर्तमान कार्यकी आड़में कोई दूसरा काम करेगा। खैर, पत्रलेखक, बुनना सीखनेका अपना पाठ्यक्रम समाप्त कर सकते हैं। किसी भी अच्छे नक्शे बुननेवालेको १ रुपया रोजकी आमदनी होती ही है। अगर वे होशियार मोची हो जाते तो भी उतना पैदा कर सकते थे। जिसने चरखा आन्दोलनका भाव हृदयंगम कर लिया है, उसे तो फिर कभी बेकारी अनुभव करनेकी जरूरत ही नहीं। क्या पत्रलेखकने चरखा-शास्त्र में विद्वत्ता प्राप्त कर ली है? क्या वे ओटना और धुनना जानते हैं? अगर जानते हैं तो धुनाई और ओटाईसे वे अठन्नीसे लेकर एक रुपया रोजतक कमा सकते हैं। मगर अब हालमें ही खादी-सेवक संघ बनने जा रहा है। जो गरीब होनेपर भी काम करनेके इच्छुक हैं वे उस सेवाके लिए लियाकत पैदा करनेपर अपना गुजारा कर सकते हैं। उन ईमानदार लोगोंके लिए इसमें उन्नतिके लिए अपार अवकाश है, जो शरीर-श्रम करनेसे नहीं घबराते, जिन्हें साधारण गुजर-खर्चसे ही सन्तोष है और धन या नामकी अभिलाषा नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-१०-१९२६