पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/५३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

५१९. भूल-सुधार

२३वीं सितम्बरके 'नवजीवन' में "निष्क्रिय प्रतिरोध, सही और गलत" शीर्षक लेखमें मैंने लिखा था कि वह अखबार, जिसमें से मैंने उद्धरण दिये हैं, एक अमेरिकी मित्रने मेरे पास भेजा है। यह भूल थी। भेजनेवाले सज्जन हिन्दुस्तानी हैं और वे आजकल हिन्दुस्तानमें ही रहते हैं। उन्होंने मेरा ध्यान इस बातकी ओर खींचते हुए मुझे लिखा है कि 'अखबार आपके पास मैंने भेजा था; किसी अमेरिकी मित्रने नहीं। अलबत्ता वह स्वयं मुझे एक अमेरिकी मित्रसे मिला था'। मुझे अपनी इस अनजानेमें की गई भूलपर खेद है। मैंने उसको 'यंग इंडिया' के कागजोंमें रख दिया था और मैं यह भूल गया था कि उसके प्रेषक एक हिन्दुस्तानी भाई हैं।

एक छापेकी भूल

इसी लेखकने १६ सितम्बरके 'यंग इंडिया' में छपे "अनिवार्य भरतीका विरोध" शीर्षक लेखकी अन्तिम पंक्ति में एक छापेकी भूल बताई है। भूल है, "ईच इज़ अफेड एन्ड ट्रस्टफुल ऑफ हिज़ नेबर," इसमें 'डिस्ट्रस्टफुल' होना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-१०-१९२६

५२०. पत्र: जेड॰ एम॰ पैरेटको

आश्रम
साबरमती
७ अक्तूबर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं आपका दृष्टिकोण समझता हूँ। लेकिन फिर भी मैं उसे अपना नहीं सकता। मेरा विचार शायद गलत हो, लेकिन मुझे दिन-प्रतिदिन यह एहसास होता जा रहा है कि ठोस सुधार करनेके लिए अखबारोंकी मदद लेनेपर जरूरतसे ज्यादा जोर दिया गया है। आपने अपने पत्रमें जिन-जिन चीजोंका जिक्र किया है वे सभी खामोशीके साथ अधिक संगठित और व्यवस्थित ढंगसे लगातार काम करके कहीं अधिक अच्छी तरह की जा सकती हैं। इसलिए मेरा आपसे यही अनुरोध है कि आप मुझसे कुछ लेखादि पानेका विशेष आग्रह न करें। इसमें मुझे कोई रुचि नहीं है। मैं आपसे यह भी कह दूँ कि मैं 'यंग इंडिया' और 'नव-जीवन' का सम्पादन कार्य अब भी कर रहा हूँ, उसका कारण यही है कि यह कार्य पहलेसे ही मेरे हाथमें है अथवा इसे मुझपर लगभग थोप दिया गया था। लेकिन