पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/५४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपाय है। लेकिन वह उपाय, उपाय कहने योग्य नहीं है। लावारिस गायों-भैंसों तकके लिए भी जहाँ काफी पिंजरापोल नहीं, वहाँ आवारा कुत्तोंके लिए अलग पिंजरा-पोल खोलनेका विचार मुझे तो बहुत ही कठिन लगता है।

जीवोंको मारनेमें पाप लगता है, इस विषयमें हिन्दू धर्ममें मतभेद सुननेमें नहीं आता। मेरा तो ऐसा मत है कि सभी धर्मोमें इस सिद्धान्तको स्वीकार किया गया है। सिद्धान्त ढूँढ़ निकालनेमें कोई मुश्किल नहीं होती; सारी मुश्किल केवल उसपर अमल करनेमें ही आती है। सिद्धान्तका अर्थ है अमुक विषयकी पूर्णता। किन्तु अमल करनेवाले हम मनुष्य अपूर्ण हैं। अपूर्णके द्वारा पूर्णका अमल होना अशक्य होनेके कारण, प्रतिक्षण सिद्धान्तके उल्लंघनकी नई मर्यादा बाँधनी पड़ती है। इसी कारण हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि यज्ञार्थ की हुई हिंसा, हिंसा नहीं होती। यह एक अपूर्ण सत्य है। हिंसा तो सभी समय हिंसा ही रहेगी और हिंसा-मात्र पाप होगा। किन्तु जो हिंसा अनिवार्य हो जाती है उसे व्यवहार-शास्त्र पाप नहीं मानता। इसलिए व्यवहार-शास्त्रने यज्ञार्थ की गई हिंसाका अनुमोदन किया है और उसे शुद्ध पुण्यकर्म तक मान लिया है।

किन्तु अनिवार्य हिंसाकी व्याख्या नहीं की जा सकती; क्योंकि वह तो देश, काल और पात्रके अनुसार बराबर बदलती रहती है। एक कालमें जो बात क्षन्तव्य मानी जाती है, दूसरे कालमें वही अक्षन्तव्य। दुर्बल शरीरके मनुष्यके लिए पूरे जाड़ेमें शरीरकी रक्षाके लिए लकड़ी या कोयला जलानेमें होनेवाली हिंसा अनिवार्य हो सकती है; किन्तु भर-गरमीमें बिना-जरूरत जलाई गई आग स्पष्ट हिंसा है।

हमने जन्तुनाशक दवाओंका उपयोग करके विषैले कीटाणुओंका नाश करना धर्म स्वीकार कर लिया है। आप जन्तुनाशक दवाको जाने भी दें। बन्द कोठरीमें जहरीली हवा होती है। उसमें जहरीले कीटाणु होते हैं। उस कोठरीको खोलकर उसमें हवा और उजालेको दाखिल करके, हम जहरीले कीटाणुओंका नाश करते हैं। शुद्ध हवा, उत्तम प्रकारकी जन्तुनाशक दवा है।

ऐसे बहुतसे उदाहरण दिये जा सकते हैं। जो नियम ऊपरके उदाहरणोंमें लागू होता है, वही नियम पागल कुत्तोंको मारने या खस्सी करनेमें भी लागू होता है। पागल कुत्तेको मारना तो छोटीसे-छोटी हिंसा है। जंगलमें रहनेवाला, दयाका सागर कोई मुनि, पागल कुत्तेका नाश नहीं करता। उसके पास दूसरी ही रामबाण दवा होती है। वह अपने कृपाकटाक्षसे कुत्तेका पागलपन नष्ट कर देता है। किन्तु वे गृहस्थ शहरी क्या करें, जिन्हें शहर और अपने बालकोंकी रक्षाका धर्म सौंपा गया है, और जिनमें मुनिके आदर्श गुण तो नहीं हैं; किन्तु पागल कुत्तेको मारनेकी शक्ति है? अगर मारते हैं तो पाप करते हैं, नहीं मारते हैं तो महापाप होता है। वे पागल कुत्तेको मरवानेका अल्प पाप करके उसकी अपेक्षा महत् पापसे बचते हैं।

मैं अपनेको अहिंसामय मानता हूँ। अहिंसा और सत्य मेरे दो प्राण हैं। मैं यह मानता हूँ कि मैं उनके बिना जी नहीं सकता। किन्तु मुझे अहिंसाकी महान् शक्ति और मनुष्यकी पामरताका क्षण-क्षणमें अधिकाधिक स्पष्ट रूपसे अनुभव होता रहता