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५३०. पत्र: बी॰ जी॰ हॉनिमैनको

रविवार, १० अक्तूबर, १९२६

प्रिय मित्र,

अगर मैं यह कहूँ कि मेरा आपके नये पत्रके लिए कोई सन्देश भेजना ठीक नहीं होगा तो आशा है कि आप मुझे गलत नहीं समझेंगे।[१] बढ़ती हुई कटुताने मेरा मन दुःखी कर दिया है। समाचारपत्रोंकी बहुलताके साथ कटुता भी बहुत बढ़ती है। इसलिए पिछले कुछ दिनोंसे मैंने समाचारपत्रोंको, विशेषकर नये पत्रोंको, सन्देश भेजना बन्द कर दिया है। अभी दो सप्ताह पहले ही मैंने डा॰ सत्यपालको उनके नये उपक्रमके लिए सद्भावना सन्देश भेजनेसे इनकार कर दिया था।[२] संयुक्त प्रान्तके एक राष्ट्रवादी साप्ताहिकके साथ भी मैंने यही किया था। यदि ऐसे वक्त में अखबार आरम्भ करनेसे आपको विरत कर सकूँ तो मैं समझँगा कि मैंने एक सच्चे मित्रका फर्ज निभाया है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ११०१०) की फोटो-नकलसे।

५३१. वसीयतनामा

१० अक्तूबर, १९२६

यह मेरा आखिरी वसीयतनामा है। इसके पहलेके मेरे सारे वसीयतनामे इसके द्वारा रद्द किये जा रहे हैं। मेरे पास मेरी अपनी कोई मिल्कियत नहीं है, फिर भी यदि मेरी मृत्युके बाद किसी वस्तुको मेरी निजी मिल्कियत माना जाये तो मैं सत्याग्रहाश्रमके ट्रस्टियों श्रीयुत् रे[वाशंकर] ज[गजीवन] झवेरी, ब[जाज] जमनालालजी, म[हादेव] देसाई, इ[माम साहब] अ [ब्दुल] का[दिर] बावज़ीर तथा छ [गन] लाल खु[शालचन्द] गांधीको अथवा मेरे मरणकालके समय और उसके बाद समय-समयपर जो ट्रस्टी होते रहेंगे उन्हें उसका वारिस नियुक्त करता हूँ। मैंने जो-जो पुस्तकें लिखी हैं, जो भी लेख लिखे हैं और इसके बाद जो-जो पुस्तकें अथवा जो लेखादि

  1. हॉर्निमैनने १६ अक्तूबरको प्रकाशित होनेवाले इंडियन नेशनल हैराल्डके प्रथम अंकके लिए, गांधीजीका सन्देश मांगा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि उनके पत्रकी नीति 'बिलकुल राष्ट्रवादी होगी और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसका समर्थन करेगा।' (एस॰ एन॰ ११००३)।
  2. देखिए "पत्र: डा॰ सत्यपालको", २१-९-१९२६।