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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिखूँगा उनका वारिस भी मैं उक्त ट्रस्टियोंको नियुक्त करता हूँ। मैं उन्हें अपनी मृत्युके बाद उन सारी हलचलोंके संचालनका भार भी सौंपता हूँ जिन्हें मेरे मरणके बाद मेरे नामसे चलाना आवश्यक हो जाये। साथ ही उक्त पुस्तकों और लेखों अथवा उनके स्वत्वाधिकारसे जो-कुछ आमदनी होगी तथा मेरी निजी मिल्कियतकी तरह जो कुछ माना जायेगा उस सबका उपयोग उक्त ट्रस्टीगण सत्याग्रहाश्रमके उद्देश्योंको सफल बनानेकी दृष्टिसे इस रीतिसे करेंगे जो उन्हें उस कार्यकी दृष्टिसे योग्य जान पड़े। यदि न्यासियोंमें से कोई मेरे जीवित रहते हुए अथवा उसके बाद त्यागपत्र दे दे अथवा उसका शरीर छूट जाये तो बाकी बचे हुए ट्रस्टीगणोंको वह सब करनेका अधिकार है जो इस वसीयतनामेकी रूसे करना योग्य हो और यदि वे चाहें तो नये ट्रस्टीकी नियुक्ति भी कर सकते हैं। मैं इस वसीयतनामेमें संशोधन और परिवर्द्धन करनेका अधिकार अपने हाथमें रखता हूँ।

यह वसीयतनामा मैंने अपने होश-हवासमें और अपनी ही मरजीसे साबरमती सत्याग्रह आश्रम में; आषाढ़ सुदी ४, संवत् १८८२ को किया है।

मोहनदास करमचन्द गांधी

गवाह:


देसाई वालजी गोविन्दजी


छोटेलाल जैन

मूल गुजराती (एस॰ एन॰ १२२२०) की फोटो-नकलसे।

५३२. पत्र: चन्द्रशंकरको

आश्रम
आश्विन सुदी ४, १९८२, ११ अक्तूबर, १९२६

भाईश्री ५ चन्द्र शंकर,

आपका पोस्टकार्ड मिला। मुझे न तो प्रवृत्तिकी इच्छा है और न निवृत्तिकी। मुझे तो स्वराज्य लेनेकी भूख है और वह तीव्र होती जाती है।

मैं सम्राट् होता तो एक काम और करता। वह यह कि रोगको अपराध समझ रोगियोंको दण्ड देता और ऐसे रोगियोंमें आपका नाम सबसे पहले होता।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९५४) की माइक्रोफिल्मसे।