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५३३. जाति-अभिमान

एक जर्मन भाईने, जो जाति-भेदको दूर करना चाहते हैं, यूरोपके गोरों द्वारा अबीसीनियाई और रिफ लोगोंके ऊपर किये जानेवाले अत्याचारोंपर और अमेरिकाके संयुक्त राष्ट्रमें हब्शियोंके साथ जातिकी उच्चता बनाये रखनेके नामपर अमेरिकामें रोज ही जो अन्याय किये जाते हैं, उनपर एक लेख भेजा है। उस लेखमें से ये तीन उदाहरण चुन कर देता हूँ:

अभी-अभी कुछ ईसाई पादरी पवित्र भूमि (जेरूसलेम) की यात्रा करने गये थे। दक्षिण राज्योंके एक काले पादरी सज्जन भी जाना चाह रहे थे; किन्तु चूँकि पादरी उसे अपने साथ ले जाना नहीं चाहते उसका भाड़ा लौटा दिया गया और क्षतिपूर्तिकी रकम चुका कर उन्होंने उससे छुटकारा पाया।
दक्षिण कैरोलिना (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका) में एक गोरेने एक मोटर गाड़ी चुरा ली। उसे चार सप्ताहकी कैदको सजा मिली। उसी न्यायालयने बाइ-सिकिल चुरानेके जुर्ममें एक हब्शीको तीन सालकी कड़ी कैदको सजा दी। गोरी बालिकापर बलात्कार करनेके अपराधमें डेलोवेयर (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका) के एक हब्शीको फाँसी दी गई; किन्तु अलबामा (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका) में दो गोरोंको एक काली बालिकापर बलात्कार करनेके अपराध में २५, २५ डालर (लगभग ७८ रुपया) जुर्माने की सजा दी गई।

अगर गोरा आदमी जाति-अभिमानके दोषका अपराध करता है तो हम जन्म-अभिमानका। अछूत कहे जानेवाले लोगोंके साथ हमारा बरताव, काले लोगोंके प्रति गोरोंके बरतावसे अच्छा नहीं है। इन उदाहरणोंको यहाँ देनेका मतलब यह है कि पश्चिमकी भौतिक उन्नतिसे उनके आचारमें कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ा है। आचार नीति ही आखिरकार किसी भी सभ्यताकी सही कसौटी है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १४-१०-१९२६
 
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