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५३४. प्रश्नोत्तर

मैं सहर्ष एक प्रश्नावलीको[१] उत्तरों सहित दे रहा हूँ। जवाब लम्बे नहीं दे पाऊँगा, भले ही आलोचक महोदयको इनसे पूरा सन्तोष न मिले।

१. मैंने जिस बातका समर्थन किया है वह यह है कि जो माता-पिता अपनी लड़कियोंका विवाह कच्ची उम्र में कर देनेका पाप करते हैं, अगर उनकी लड़कियाँ बालपनमें ही विधवा हो जायें तो उन्हें उनका विवाह करके अपने पापका प्रायश्चित्त कर लेना चाहिए।[२] अगर वे परिपक्व उम्र में विधवा हों तो पुनविवाह करने या विधवा रहनेका निश्चय उन्हें स्वयं ही करना चाहिए। अगर मुझसे पूछा जाये कि इस सम्बन्धमें नियम क्या होना चाहिए तो मैं कहूँगा कि जो नियम स्त्रियोंके लिए हों वे ही पुरुषोंके लिए भी हों। अगर ५० वर्षका विधुर धृष्टतापूर्वक पुनर्विवाह कर सकता है तो उसी उम्रकी विधवाको भी वही अधिकार होना चाहिए। यह दूसरी ही बात है कि मेरी समझमें स्त्री और पुरुष दोनों ही इस अवस्थामें पुनर्विवाह करनेसे पापके भागी बनेंगे। यदि ऐसी किसी भी विधवा या ऐसे किसी भी विधुरका, जिसने सयाना होनेपर अपनी खुशीसे विवाह किया था, पुनविवाह करना पाप ठहराया जाने लगे तो मैं इस आशयके सुधारका समर्थन करूँगा।

२. इस विषयमें[३] मैंने जो-कुछ कहा है, उसका अर्थ यही है कि पंचम वर्ण नहीं रहना चाहिए। इसलिए अछूतोंको चौथे वर्णमें ही मिला देना चाहिए। चार वर्णोंका पुनर्गठन करना और उनमें कृत्रिम उच्चता-नीचताको दूर करना और उपजातियोंको समाप्त करना सुधारोंकी दूसरी ही श्रेणीमें आते हैं। सहभोजका अर्थ होता है एक ही थालीमें खाना। मैं अगर विष्णु सालोमन इस्माइल ऐंड कम्पनीका बनाया बिस्कुट खाता हूँ तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं उनके साथ सहभोज करता हूँ।

३. मैं अपनेको सनातनी हिन्दू[४] इसलिए कहता हूँ कि मैं वेदों, उपनिषदों और पुराणों और सन्त-सुधारकोंकी कृतियोंमें विश्वास रखता हूँ। इस विश्वासके लिए मुझे हरएक वस्तुको जो शास्त्रके नामसे अभिहित हो, आप्त वचन माननेकी जरूरत नहीं है। नीतिके मूल सिद्धान्तोंका जिनसे विरोध होता है, मैं उन सभी बातोंका विरोध करता हूँ। मेरे लिए पण्डितोंकी सभी व्यवस्थाओं या व्याख्याओंको मानना आवश्यक नहीं है। फिर मैं अपनेको सनातनी हिन्दू तभीतक कहता हूँ जबतक साधारण हिन्दू

  1. यहाँ नहीं दी जा रही है।
  2. प्रश्न गांधीजीके १९-८-१९२६ के यंग इंडिया में प्रकाशित "दलित मानवता" शीर्षक लेखसे सम्बद्ध था।
  3. इस प्रश्नमें लेखकने पूछा था कि जातीय सुधारोंमें अन्तर्जातीय सहभोजको भी स्थान क्यों न दिया जाये।
  4. लेखकने गांधीजीके २६-८-१९२६ के यंग इंडियाके लेख "बालविवाहका अभिशाप का हवाला देकर पूछा था, आप जब हिन्दू धर्म शास्त्रोंको नहीं मानते तो अपने आपको सनातनी वयों कहते हैं?