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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रार्थना अर्थात् अपनी तुच्छता, अशक्तता और ईश्वर कही जानेवाली उस कल्पित महासत्ताकी शक्तिमत्ता तथा दयालुताको स्वीकार-भर करना। दूसरा हेतु है उपयोगिता अर्थात् जिन्हें शान्ति या सन्तोषकी जरूरत है, उनका शान्ति और सन्तोषके लिए प्रार्थना करना। मैं पहले आपके दूसरे तर्कका ही खण्डन करूँगा। यहाँ आपने प्रार्थनाका विधान कमजोर आदमी के सहारेके रूपमें किया है। जीवनको कठिनाइयाँ गम्भीर हैं और मनुष्योंकी विवेकबुद्धिको नष्ट करनेकी उनकी शक्ति ऐसी जबर्दस्त है कि बहुतसे लोगोंको कभी प्रार्थना और विश्वासकी जरूरत पड़ सकती है। उन्हें इसका अधिकार है; वे ऐसा करना चाहें तो जरूर करें। लेकिन प्रत्येक युगमें ऐसे कुछ सच्चे बुद्धिवादी हुए हैं और हमेशा होते रहते हैं—उनको संख्या बेशक बहुत कम होती है—जिन्हें प्रार्थना या विश्वासकी जरूरत कभी नहीं होती। इसके अलावा लोगोंका एक वर्ग ऐसा है जो घोर नास्तिक भले न हो, मगर जो धर्मसे उदासीन अवश्य है।

चूँकि सबको अन्तमें प्रार्थनाकी सहायताकी आवश्यकता नहीं होती, और जिन्हें प्रार्थनाकी जरूरत मालूम होती है उन्हें प्रार्थना करनेका पूरा अधिकार है और सच पूछो तो जरूरत पड़नेपर वे प्रार्थना करते भी हैं, इसलिए उपयोगिता की दृष्टिसे प्रार्थना के लिए बलप्रयोगका समर्थन नहीं किया जा सकता। मनुष्यके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अनिवार्य शारीरिक व्यायाम और शिक्षण आवश्यक हो सकते हैं किन्तु नैतिक उन्नतिके लिए प्रार्थना और ईश्वरमें विश्वास वैसे आवश्यक नहीं हैं। संसारके कई बड़े-बड़े नास्तिक बहुत ही आचारवान मनुष्य हुए हैं। मैं समझता हूँ कि आप उनको भी अपनी तुच्छता प्रकट करनेके लिए प्रार्थना की जरूरत बतायेंगे। यह आपका पहला ही तर्क है। आपने इस नम्रताको बहुत अधिक महत्व दिया है। ज्ञानका सागर बहुत विशाल है और उसके सम्मुख बड़ेसे-बड़े निकों को भी अपना छोटापन स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु सत्यको शोधमें उन्होंने बहुत शौर्य दिखाया है। अपनी शक्तिके प्रति उनका विश्वास प्रकृतिके ऊपर पाई अपनी बड़ी-बड़ी विजयोंके समान वृढ़ है। अगर ऐसा न होता तो आज हम सिर्फ उँगलियोंसे जमीन खरोंच कर कन्दमूल खोदते फिरते; बल्कि अभीतक तो दुनियासे हमारा अस्तित्व ही मिट जाता।

हिम-युगमें, जब शीतसे लोग मर रहे थे, जिसने पहले-पहल आगका पता लगाया होगा, उससे आपकी श्रेणीके लोगोंने व्यंगमें कहा होगा—"तुम्हारी योजनाओंसे क्या लाभ ? ईश्वरीय शक्ति और कोपके सामने उनका क्या उपयोग?" उसके बाद नम्र पुरुषोंके लिए इस जीवन के बाद स्वर्गके राज्यका वचन दिया गया। इसका तो हमें पता नहीं कि वह उन्हें सचमुच मिलेगा या