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५४६. तार: जमनालाल बजाजको

साबरमती
१६ अक्तूबर, १९२६

श्री
बम्बई

कमलाको[१] मामूली मलेरिया है मोतीझारा नहीं। हालत सुधारपर। चिन्ताकी बात नहीं।

बापू

पाँचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद

५४७. क्या यह जीवदया है?–२

उक्त शीर्षकका लेख लिखते समय भी मैं जानता था कि मैं एक बड़ी भारी उपाधि मोल ले रहा हूँ, लेकिन वह अनिवार्य था।

मेरे पास रोष भरे पत्र आ रहे हैं। तीन भाई तो मुझसे रातको ऐसे समय मिलने आ गये जब जैसे-तैसे मुझे आरामकी साँस लेनेका समय मिला था। उन्होंने उसमें भंग करके और दया-धर्मको क्षणभर त्यागकर मुझसे अहिंसाकी चर्चा की। वे मुझसे जीवदयाके नामपर मिलने आये थे। अतः मैं उनसे मिलनेसे इनकार कैसे कर सकता था?

मैं उनसे मिला। मैंने उनमें से एक भाईमें क्रोध, कड़वापन और धृष्टता देखी। उनकी मेरे मनपर ऐसी छाप पड़ी कि वे मुझसे समाधान पानेके बजाय मुझे शिक्षा देने आये हैं। मुझे सुधारनेका अधिकार सभीको है, किन्तु सुधारकोंको मेरी न्यूनता तो समझ लेनी चाहिए। इन भाइयोंने ऐसा नहीं किया था।

इसमें उनका दोष नहीं था, दोष अधीरताका था। अब तो यह दोष व्यापक हो गया है। अधीरता हिंसाका लक्षण है । ये भाई अहिंसाके समर्थक थे, इसलिए मुझे उनकी अधीरता खटकी।

वे जैन होनेका दावा करते थे। मैंने जैनधर्मका कुछ अभ्यास किया है। मैंने जैनधर्ममें अहिंसाका जुदा ही रूप देखा है। इस भाईमें मैंने उसका विपरीत रूप देखा। जैनियोंको कुछ अहिंसाका इजारा तो मिला नहीं है। अहिंसा किसी एक धर्मका लक्षण नहीं है। धर्म-मात्रमें अहिंसा है। उसका अमल सभी धर्मोमें एक समान नहीं होता।

  1. जमनालाल बजाजकी पुत्री।