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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रायसे मिलूँ, तो मैं उनको भी इससे ज्यादा कुछ नहीं बता सकूंगा। दो पैसे रोजकी बात गलेमें अटकती है। चरखा स्वीकार करनेका अर्थ है, अपने दृष्टिकोणमें आमूल परिवर्तन करना।

छोटेलाल वहाँ आपके पास है। आशा है कि आप उसकी मनःस्थितिको निश्चित ही प्रसन्न बना सकेंगे। यदि उद्वेग और अवसादकी मनःस्थितिसे उसका उद्धार किया जा सके तो मैं उसके विवाहकी बातकी भी स्वीकृति दे दूं। यदि आप उसे एक नया आदमी बना सकें और वह अपने अलावा दूसरोंके बारेमें भी सोचने लगे तो अपनी नव-निर्मित निकायकी अगली बैठकमें में आपके प्रति धन्यवादका प्रस्ताव रखूंगा।

शास्त्रीने[१] कलकी शाम हम लोगोंके साथ आनन्दसे बिताई। उन्होंने आश्रम भी देखना चाहा और हर चीजको बड़ी दिलचस्पीके साथ देखा।

पॅथिक - लॉरेंसने मुझे लिखा है कि आपके साथ उनका समय अच्छा बीता।

सस्नेह,

आपका,
बापू

[ पुनश्च : ]

वर्धाके बारेमें क्या सोचा है?

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १९७४४) की फोटो - नकलसे।

७०. पत्र : रविशंकर ग० अंजारियाको

कार्तिक वदी ५ [ २३ नवम्बर, १९२६ ][२]

भाईश्री ५ रविशंकर अंजारिया,

आपके प्रश्नोंको पढ़ गया हूँ। विश्वास अन्धा हो तो वह आत्माका हनन ही करता है। इसके सिवा, यह ऐसा विषय नहीं है जिसमें किसीपर विश्वास रखनेकी जरूरत हो। इसलिए सब लोग अपनी-अपनी बुद्धिका उपयोग करके निर्णय करें, यही उचित माना जायेगा।

सारे आवारा कुत्ते बुरी हालतमें हैं, ऐसी कोई बात आपने मेरे लेखमें नहीं देखी होगी।

सारे कुत्ते काटनेवाले होते हैं अथवा उनके पागल होनेकी सम्भावना है, ऐसा भी मैंने कहीं नहीं कहा है।

कुत्ता जातिके विनाशका भी मैंने कहीं सुझाव नहीं दिया है।

  1. वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री।
  2. पत्रमें १०-१०-१९२६ और १७-१०-१९२६ को नवजोवनमें पागल कुत्तोंके बारेमें जो लेख प्रकाशित हुए थे, उनकी चर्चा की गई है। इसपर से मालूम होता है कि यह पत्र १९२६ में लिखा गया था।