७१. पत्र : जनकधारी प्रसादको
आश्रम
साबरमती
२४ नवम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। ज्वरकी बातसे दुख हुआ; साथ ही यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप उससे नजात पा गये हैं।
'कमिंग ऑफ़ दि वर्ल्ड टीचर' सम्बन्धी साहित्य पढ़नेके लिए समय निकालनेको मेरा दिल नहीं चाहता; क्योंकि उसमें मेरा विश्वास नहीं जमेगा। अगर एक महान उपदेशक धरतीपर आता है, तो हम चाहे उसे मानें या न मानें, वह अपना प्रभाव डालेगा ही। जबतक हम ईश्वरमें विश्वास करते हैं और अपने सच्चे दिलसे उसकी पूजा करते हैं, तबतक हमारे पाँव ठोस आधारपर हैं। हमारे लिए जो भी कुछ कर्त्तव्य है, उसके लिए वह हमारा रास्ता साफ कर देगा।
हृदयसे आपका,
गांधी विद्यालय
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७४६ ) की माइक्रोफिल्मसे ।
७२. पत्र : एफ० डब्ल्यू० पॅथिक लॉरेंसको
आश्रम
साबरमती
२४ नवम्बर, १९२६
आपका पत्र[१] पाकर मुझे प्रसन्नता हुई। मित्रोंने सचमुच मुझे आपका और श्रीमती लॉरेंसका आश्रम में स्वागत करने को तैयार कर दिया था और मैं आपके यहाँ आनेकी प्रतीक्षा कर रहा था। मुझे खेद है कि आप नहीं आ सके। यदि मैं गौहाटी
- ↑ पॅथिक लॉरेंसने जो अपनी पत्नीके साथ उस समय भारतका दौरा कर रहे थे, १६ नवम्बरको अडयारसे पत्र लिखते हुए उस समयकी याद दिलाई थी जब कई साल पहले गांधीजी लंदनमें उनके घर गये थे, और आशा व्यक्त की थी कि अगले महीने गौहाटी-कांग्रेस में फिर गांधीजीसे मुलाकात होगी (एस० एन० १०८४०)।