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प्रार्थनाका एक दिन

अपने छोटे-बड़े सभी दैनिक कार्योंके मार्ग-दर्शनमें उसकी सहायता माँगना। परमात्माके नामपर किया गया — उसको समर्पित — कोई काम छोटा नहीं होता। इस प्रकार किये गये सभी कार्योंका महत्त्व एक समान होता है। भगवान्की सेवामें झाडू लगानेवाला भंगी और अपनेको केवल रक्षक-भर मानकर भगवान्‌को भेंट चढ़ानेवाला राजा, दोनों ही एक समान पुण्य करते हैं। हम अपूर्ण जीवोंके विपरीत, वहाँ उसके दरबारमें तो कामके बजाय कामके उद्देश्यसे ही महत्त्व निश्चित होता है। हम लोग तो कामके आधारपर उद्देश्यका अनुमान लगाते हैं। लेकिन परमात्मा काम और उसके उद्देश्य दोनोंको जानते हुए, उद्देश्यकी कसौटीपर कामकी परख करता है।

और चूंकि एन्ड्रयूजके उद्देश्य अत्यन्त पवित्र हैं, इसलिए उनका विश्वास है कि ईश्वर उन्हें अवश्य सफलता देंगे। उनके पास ऐसा विश्वास रखनेका पूरा-पूरा कारण भी है। जहाँ अबतक दूसरे असफल होते रहे हैं उन्हें वहाँ भी सफलता मिली है, एन्ड्रयूजकी कितनी ही सेवाएँ तो अज्ञात हैं; और किसीको उन सेवाओंके इतिहासका पता नहीं है। उनकी जिन सेवाओंसे लोग परिचित हैं, वे उनकी सार्वजनिक महत्त्व की या फलदायी सेवाएँ नहीं हैं; हालकी घटनाओंकी बात छोड़ दें तो भी। यह कौन जानता है कि लॉर्ड हार्डिंगके बहुतसे हितकारी निर्णयोंमें एन्ड्रयूजका कितना हाथ रहा था? उनके बारेमें यह सच ही है कि उनके दाहिने हाथका काम उनके बाँये हाथको भी मालूम नहीं हो पाता।

इस भले आदमीने दक्षिण आफ्रिकाके मामलेमें अपना तन-मन लगा रखा है। पहले-पहल उन्हें काममें स्वर्गीय गोखलेने लगाया था। वे इसके विषयमें गूढ़ चिन्तन करते हैं और हृदयसे प्रार्थना करते हैं। इस तारके लिए, जिसे मैंने ऊपर प्रकाशित किया है, उन्होंने मुझे पहलेसे ही पत्र लिखकर तैयार कर रखा था। उनके संसर्गसे भारतीयों में भी प्रार्थनामें विश्वासका भाव फैल गया है। मैं उन सभी लोगोंको जानता हूँ; किन्तु यह मानना ही होगा कि उनमें बहुतोंने उनकी सलाहको एक रस्मके तौरपर, या उनको खुश करनेके लिए या उससे राजनीतिक लाभ उठानेके लिए स्वीकार किया है। मगर मैं यह भी जानता हूँ कि उनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने सच्चे दिलसे उनकी बात स्वीकार की है। इन थोड़े लोगोंकी सच्ची श्रद्धा ही बहुत लोगोंकी अश्रद्धा या उदासीनताको आच्छादित कर लेगी।

अपनी समझ के अनुसार दक्षिण आफ्रिकाके डच लोग भी धार्मिक लोग हैं। इसी कारण दक्षिण आफ्रिकामें अकाल पड़ने या टिड्डियोंके दल आनेपर सरकारकी ओरसे प्रभुके सामने विनय और प्रार्थनाके लिए दिन निश्चित किये जाते हैं। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि एन्ड्रयूजको एक ऐसे कामके लिए जो उनके मस्तिष्कमें नहीं बल्कि हृदयमें प्रतिष्ठित है, वहाँके अच्छेसे अच्छे यूरोपीय सज्जनोंकी सहानुभूति प्राप्त हुई है। मगर उन्हें अल्पमें सन्तोष नहीं होता। वे भारत और भारतकी सार्वजनिक संस्थाओंकी पर्याप्त सहायता चाहते हैं। वे हमसे प्रस्ताव पास करनेको नहीं कहते, पैसोंके लिए हाथ नहीं पसारते, वे तो हमारे दिल पिघलाना चाहते हैं। अगर हम इसपर राजी हों तो वे चाहते हैं कि हम भगवानपर भरोसा करें, और उससे सहायता माँगें।