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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एन्ड्रयूज अंग्रेज होते हुए भी भारतीय बन गये हैं। वे शासन करना चाहते हैं किन्तु ताकतसे नहीं, प्रेमसे। और प्रेम हमेशा प्रेमीका अपने प्रियके साथ तादात्म्य स्थापित करता है। उनका विश्वास है कि दक्षिण आफ्रिकामें यूरोपीयोंकी प्रतिष्ठा खतरे में है। दक्षिण आफ्रिकामें लोगोंने इतने कष्ट सहे हैं कि एन्ड्रयूजको विश्वास है कि एशियावासियों और सभी काले तथा गोरे लोगोंके सम्बन्धोंका भविष्य बहुत-कुछ इसी सम्मेलनपर निर्भर है, जिसे करानेका ज्यादातर श्रेय उन्हींको है। इन प्रार्थनाओंके द्वारा वे भग- वान्का आशीर्वाद चाहते हैं और उस आशीर्वादको माँगनेमें हमारा भी सहयोग चाहते हैं। अब कोई यह न पूछे कि प्रार्थना क्या है, ईश्वर कौन है और कहाँ है? प्रार्थना और ईश्वरमें विश्वास, ये केवल श्रद्धाकी बातें हैं। इसलिए जिन लोगों में वह श्रद्धा हो, वे इस अंग्रेज भारतीय सज्जनकी अपीलपर ध्यान दें।

अपनी असमर्थताको खूब समझ लेने और सब कुछ छोड़कर ईश्वरपर भरोसा करनेकी भावना ही प्रार्थनाके रूपमें फलित होती है। अपनी असमर्थताको हम जानते जरूर हैं। अपनी रवानगीसे पहले परम आदरणीय श्रीनिवास शास्त्रीने कहा कि भारतीयोंकी जिस स्थितिकी रक्षाके ध्येयको लेकर में दक्षिण आफ्रिका जा रहा हूँ, वह बहुत संकटपूर्ण स्थिति है। इसलिए, अगर हमें ईश्वरमें विश्वास हो तो हम १९ दिसम्बरको प्रार्थना करें। अगर चाहें तो सभी हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी और दूसरे लोग इस प्रार्थनामें शरीक हो सकते हैं। ईश्वरको चाहे हम हजार अलग-अलग नामोंसे पुकारें किन्तु वह परमात्मा हम सबके लिए समान और एक ही है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-११-१९२६

७७. अनोखे विचार[१]

यह एक संयुक्त वक्तव्य है जिसे एक बोर्ड हाई स्कूलके शिक्षकोंने तैयार किया है। इसलिए यह लेख एक हदतक प्रातिनिधिक और जिम्मेदाराना है। अगर इसमें यह विशेषता न होती तो में इसे न छापता। अस्पृश्यता आन्दोलन तथा अन्य सामाजिक और धार्मिक सुधारोंके लिए चलनेवाले आन्दोलनोंके फलस्वरूप अब यह प्रकाश में आ रहा है कि पढ़े-लिखे लोगोंके भी कैसे-कैसे भोंड़े और हल्के विचार होते हैं। शिक्षकों द्वारा भद्दे अन्धविश्वासोंके इस समर्थनसे सिद्ध होता है कि यदि हम किसी बातको ठीक मानते हों तो फिर उसके समर्थन में तर्क भी मिल जाते हैं। इसलिए किसी भी बड़े आन्दोलनमें तर्कोंका स्थान बहुत मामूली होता है। इसमें तो सिर्फ सुधारका

  1. . वह संयुक्त वक्तव्य जिसमें ये विचार प्रकट किये गये थे, यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें शिक्षकोंने गांधीजीके अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलनकी बुद्धिमत्ता में सन्देह व्यक्त किया था। उन्होंने सुझाव दिया था कि गांधीजी स्वयं ऋषियोंकी तरह योग-साधना करें और अपने कुछ अनुयायियों को गांवोंमें काम करने के लिए भेजें।