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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई सार्वजनिक काम होगा ही नहीं। कार्यकर्त्ताओंको सादे, कम दामके, और अनुत्तेजक आहारके लाभ ही बतलाये जा सकते हैं। मगर जबतक यह सुधार हो नहीं लेता तबतकके लिए सारे सार्वजनिक काम बन्द रखनेका साहस कोई नहीं कर सकता। सच्चे धार्मिक भावके विकल्पमें धर्म और चरित्रको आहारकी कसौटीपर परखनेकी हमारी आदतसे बड़ी बाधा पहुँचती है। ये सुयोग्य शिक्षक तो उस विवाह सुधारको भी, जिसे बहुत दिन पहले ही शुरू हो जाना चाहिए था, तबतक स्थगित रखना चाहेंगे जब तक लोग उनका बताया सात्विक आहार शुरू न कर दें। इस 'सात्विक आहार' शब्दका कुछ भी अर्थ क्यों न हो, मगर आत्मसंयम और आहारमें बड़ा महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है, इसमें कोई शक नहीं। किन्तु इसके साथ इस बातके भी बहुतसे उदाहरण हैं कि साधारण ढंगका भोजन करते रहनेवाले लोग भी आत्मसंयम बरतते रहते हैं। जो लोग आत्मसंयमके अभ्यासी हैं वे आत्मसंयम पैदा करनेकी दृष्टिसे आहारसंयमका महत्त्व स्वयं समझ लेते हैं। इसलिए और दूसरे सुधारोंके लिए आहारमें सुधार करनेको परमावश्यक शर्त बनाना गलत होगा।

बालविवाहकी क्रूर प्रथाको हटानेके सम्बन्धमें इन शिक्षकोंको याद रखना चाहिए कि ऐसे भी लोग हैं, सादासे-सादा आहार करनेपर भी जिनके लिए अपनी वासनाओंका दमन करना बहुत कठिन होता है। सब करने और कहनेके बाद भी मन तो मन ही है। वह स्वर्गको भी नरक और नरकको स्वर्ग बना सकता है। इसके अलावा, स्त्रियोंके पावित्र्यके विषयमें इस तरहकी विकृत चिन्ताकी जरूरत ही क्या है? पुरुषोंको सच्चरित्र बनानेके लिए स्त्रियों द्वारा चिन्ता किये जानेकी बात तो कभी नहीं सुनी गयी। तब पुरुष ही क्यों स्त्रियोंकी पवित्रताका ठेका देनेका दुःसाहस करें? पवित्रता बाहरसे तो लादी नहीं जा सकती। यह तो आन्तरिक विकासकी वस्तु है, और इसलिए यह हर व्यक्तिके अपने ही प्रयासपर निर्भर है।

जहाँतक योग और अहिंसाके अभ्यासका सम्बन्ध है, यौगिक क्रियाएँ और अहिंसा व्रत करनेवाले अभ्यासियोंकी ओरसे शिक्षकों द्वारा किये गये दावेका में समर्थन नहीं कर सकता। बड़ेसे-बड़े योग सिद्ध पुरुष भी प्रकृतिके अचल-अटल नियमोंके विरुद्ध नहीं जा सकते। वे भी प्रकृतिके नियमोंसे वैसे ही जकड़े हुए हैं जैसे हम सब। अपने ही नियमोंमें परिवर्तन करनेका अधिकार स्वयं परमात्माने भी अपने पास नहीं रखा है; उसे परिवर्तन करनेकी कोई जरूरत भी नहीं है। वह सर्व शक्तिमान् है, सर्वज्ञ है। वह एक ही समय और अनायास ही भूत, भविष्य और वर्तमानका भेद जानता है। इसलिए उसे न कुछ फिरसे विचार करना है, न दुहराना है, न बदलना है, न सुधारना है।

निस्सन्देह अहिंसक योगाभ्यासी अपने अन्दर कुछ शक्तियाँ पैदा कर लेते हैं, मगर वे सब होती हैं प्राकृतिक नियमोंके भीतर ही। मैं कोई योगाभ्यास नहीं करता, क्योंकि एक तो मुझे उसके बिना ही आन्तरिक शान्ति प्राप्त है (हो सकता है, मेरा अपनी वर्तमान स्थितिसे ही सन्तोष करना गलत हो), और दूसरे मुझे ऐसा कोई आदमी नहीं मिला जिसपर मैं पूरा-पूरा विश्वास कर सकूं और वह मुझे उपयक्त यौगिक क्रियाएँ सिखला सके।