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‘गीता- शिक्षण’

[२][१]

अध्याय १

गुरुवार, २५ फरवरी १९२६

धृतराष्ट्र-जैसे अनेक नेत्रहीन हमारे शरीरके भीतर रहते हैं। हजारों बरस पहलेका यह युद्ध कोई युद्ध नहीं है; बल्कि हमारे भीतर आज भी सतत चलनेवाला युद्ध ही है।

दुर्योधन द्रोणाचार्यसे कहता है कि व्यूहकी रचना आपके ही शिष्य घृष्टद्युम्नने[२] की है। वैसे तो सभी योद्धा आपके शिष्य हैं और सभीको आपने समान युद्ध-विद्या सिखाई है; किन्तु यह उन्हींपर निर्भर है कि वे अपनी-अपनी बुद्धिके अनुसार उसका सदुपयोग करते हैं अथवा दुरुपयोग।

[३]

शुक्रवार, २६ फरवरी, १९२६

पहले दिन “पश्यैतां पाण्डुपुत्राणाम्” वाले श्लोकमें मैंने “पश्यैतां” का पदच्छेद सही नहीं किया। मैंने इस तरह पहले दिन ज्ञान प्रदर्शित न करके अपना अज्ञान ही प्रदर्शित किया। फिर भी व्याकरण न जानते हुए यदि कोई व्यक्ति मुमुक्षु हो तो उसे 'गीता' से बहुत-कुछ प्राप्त हो सकता है। 'भगवद्गीता 'में ही कहा गया है कि भक्ति हो तो स्त्री, वैश्य, शूद्र सभी ज्ञान-सम्पादन कर सकते हैं। फिर भी विद्वत्ताकी अवगणना नहीं की जा सकती। किसी भी बातको समझानेके लिए विद्या अपेक्षित है। यदि कोई ऐसी भूल करता तो मैं उसे अक्षम्य गिनता।

अस्तु, यहाँ मुख्य वर्णन शरीर-क्षेत्रका है। 'गीता'ने क्या युद्धको सर्वथा त्याज्य ही माना है? नहीं; युद्ध किया जा सकता है। किन्तु यहाँ युद्धकी आड़ में शरीर-क्षेत्रका ही वर्णन किया गया है। इस दृष्टिसे सारे नाम व्यक्ति वाचक नहीं, वरन गुणवाचक हैं। साकार गुणोंका शरीरके क्षेत्रमें युद्ध हो रहा है। व्यासके समान ज्ञानी पुरुष स्थूलयुद्धके वर्णनमें पड़ेगा ही नहीं। इस शरीरको ही कुरुक्षेत्र और उसे ही पवित्र धर्म-क्षेत्र कहा गया है। जब शरीरको ईश्वरकी सेवामें अर्पित कर दिया जाता है, तब वह धर्म-क्षेत्र बन जाता है। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि क्षत्रियके लिए युद्ध क्षेत्र हमेशा धर्म-क्षेत्र है। जिस क्षेत्रमें पाण्डव भी हों, वह तो पाप-क्षेत्र हो ही नहीं सकता।

बंकिमचन्द्र[३] कहते हैं कि द्रौपदीके पाँच पुत्र थे अथवा नहीं, इसमें शंका है। फिर भी निश्चयपूर्वक कुछ कहना कठिन है। कर्ण सूर्य पुत्र था। सभीका जन्म अलौ-

  1. प्रारम्भमें अध्यायके पहले तीन श्लोक पढ़कर सुनाये गये थे।
  2. द्रौपदीके भाई।
  3. बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (१८३८-१८९४ ); प्रसिद्ध बँगला उपन्यासकार और कवि। कृष्ण चरित्रके लेखक जिसे गांधीजीने परवदा जेलमें रहते हुए पढ़ा। हमारा प्रसिद्ध राष्ट्रगान 'वन्देमातरम्' भी इन्दकि गीतका अंश है।