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'गीता-शिक्षण'

भिगोता नहीं, फिर भला पवन उसे कैसे सुखायेगा? इतना कहनेके बाद इसीको एक-एक विशेषणके द्वारा व्यक्त किया गया है।

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽमक्लेद्योयऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥( २,२४)

और फिर इसके बाद विशेषण दिये गये हैं: नित्य, सर्वगत, स्थाणु, अचल, स्थिर, सनातन। आगेका श्लोक भी इसी बातका वर्णन करता है।

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वनं नानुशोचितुमर्हसि॥ (२,२५)

आत्माका ऐसा स्वभाव है, अतएव वह शोक करने योग्य नहीं है। इसलिए तू स्वजनोंके लिए निरर्थक शोक क्यों करता है?

[१८]

मंगलवार, १६ मार्च, १९२६

जो हमें धूपसे बचाती है, हम उसे क्या कहते हैं?[१] इसी तरह जिसका जन्म नहीं है उसके लिए एक ही शब्द है 'अज'। और जिसका छेदन नहीं किया जा सकता उसके लिए है 'अच्छेद्य'।

कृष्ण धीरे-धीरे अर्जुनको अन्धकारसे प्रकाशकी ओर ले जा रहे हैं। तुमने आत्माको देखा है?[२]

यह आत्मा इतना नटखट है कि वह हमारे भीतर पड़ा हुआ है किन्तु हम उसे देख नहीं सकते। आत्मा एक ऐसा हिरन है कि रामचन्द्रजी-जैसे व्यक्ति भी उसे नहीं मार सकते। रामचन्द्रजी सर्वशक्तिमान् हैं, इसका यही अर्थ है कि वे उसीको मार सकते हैं जो मर्त्य हो।

इतना कह चुकने के बाद कृष्ण कहते हैं कि मान लो आत्मामें ये सब गुण नहीं हैं तो इससे भी क्या होता है? वह सदा जन्म लेनेवाला और मरनेवाला हो, तब भी क्या हुआ? उस अवस्थामें तो शोक उचित है ही नहीं।

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि। (२, २६-२७)

मरनेवालेका जन्म निश्चित है। अपरिहार्य अर्थात् जिसका उपाय नहीं है, उसके लिए शोक करना शोभा नहीं देता।

  1. यह प्रश्न एक बालकसे किया गया था और उसने कहा, “छतरी”।
  2. यह भी एक बालकसे पूछा गया था और उसने उत्तरमें "नहीं" कहा था।