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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

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शुक्रवार, १९ मार्च, १९२६

उक्त श्लोक केवल अर्जुनको ही नहीं, हम सभीको ध्यान में रखकर कहा गया है। “स्वजनको मारनेसे तुझे पाप नहीं लगेगा"; यह बात 'गीता' में जहाँ-तहाँ आती ही रहती है। हार-जीत तो चलती ही रहती है, ऐसा समझकर आदमी तटस्थ रहे तो पाप नहीं लगता। किन्तु साथ-साथ यह भी कहना चाहिए कि पुण्य भी नहीं लगता। पुण्य प्राप्त करनेकी बात करेंगे तो हम पाप भी अर्जित करेंगे। अच्छीसे- अच्छी वस्तुमें भी कोई-न-कोई दोष होता ही है। संसारमें सर्वथा दोषहीन अथवा सर्वथा दोषमय कुछ भी नहीं है। जहाँ कर्म है वहाँ कुछ-न-कुछ दोष भी है। यदि हरिश्चन्द्रके मनमें तारामतीके प्रति करने योग्य व्यवहारको लेकर कोई शंका उठी होती तो कोई ऋषि अथवा मुनि उससे क्या कहता? यही कहता — तू अपनी पत्नीके गलेपर छुरी फेर दे, तुझे पाप नहीं लगेगा। यदि लाभ और अलाभ, सुख और दुःखमें भेद न मानें तो पाप करनेका लोभ कदाचित् ही हो।

यदि हमने चोरोंको दोष दिया होता और उन्हें बहुत ही दुष्ट माना होता तो हम लोग भीतरही भीतर क्रोधसे जल उठते और उन्हें मारनेका विचार भी करते।[१]

बालकके जन्मके अवसरपर उत्सव न करना सहज है, किन्तु मरणके अवसरपर दुःख न मानना कठिन बात है। यदि हम इस तरह तटस्थ रहनेका अभ्यास करें और गुस्से में न आनेका प्रयत्न करते रहें तो किसी दिन इस द्वन्द्वपाशमें से निकलनेकी घड़ी प्राप्त हो सकती है।

यहाँतक ‘भगवद्गीता' की तीन बातें हैं: (१) तुझमें यह कमजोरी कहाँसे आई? (२) अर्जुनके प्रश्न, और (३) कृष्णका उसकी बुद्धिको खोलना और यह कहना कि आत्मा अलग है, देह अलग है तथा इसके बाद लौकिक व्यवहार-बोध। तब फिर व्यक्तिका कर्त्तव्य क्या है? देह और आत्माको अलग-अलग मान लेनेके बाद लौकिक व्यवहार किस तरह चलाया जाये? उक्त तीन बातोंके बाद यह चौथी बात आती है।

एषा तेऽभिहिता सांख्य बुद्धियोंगे त्विमां शृणु।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।। (२,३९)

इस तरह मैंने तुझसे सांख्य-बुद्धिका बखान किया। अब योग-बुद्धिके विषय में सुन। यदि उसे समझकर तू कार्यरत हुआ करेगा, तो तू कर्मोके बन्धनको काट फेंकेगा।

'सांख्य' शब्दको थोड़ा उलझा हुआ माना गया है। शास्त्रियोंके लेखे यह उलझा हुआ होगा, हमारे लिए वैसा नहीं है। कृष्ण तो इतना ही कहते हैं कि अभीतक मैंने तार्किक दृष्टिसे बातें कीं, आत्मा और देहके पृथकत्वकी बात बताई। इस सैद्धांतिक बातको बता चुकनेके बाद अब उसीको योगके प्रकाशमें समझाऊँगा। 'योग' शब्दका अर्थ है प्रयोग। इन सब बातोंको जानकर तुझे इस ज्ञानका प्रयोग करना

  1. यहाँ भी आश्रमको चोरीकी ओर इशारा है।