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'गीता-शिक्षण'

है। वही अब बताया जायेगा। 'योग' शब्द 'गीता 'में बार-बार आता है। इससे प्रकट होता है कि कर्म किस तरह किया जाना चाहिए। कृष्ण कहते हैं, यदि तू यह जान लेगा, तो कर्मबन्धनसे छूट जायेगा।

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शनिवार, २० मार्च, १९२६

'गीता' को ध्यानसे पढ़नेवाले देखेंगे कि कल जो श्लोक हमने हाथमें लिया था उसके अर्थके विषयमें बड़ा मतभेद है। किन्तु मैं ऐसा मानता हूँ कि मैंने जो नियम स्वीकार कर लिया है, आप भी उसे स्वीकार कर लें। असमर्थ व्यक्ति साधुके समान भी लग सकता है। हम शास्त्रार्थके झगड़ेमें नहीं पड़ेंगे। बिशप बटलर एक बड़े विद्वान हुए, किन्तु उन्होंने शास्त्रार्थं न करनेकी प्रतिज्ञा ले रखी थी। एक नास्तिक आये। चाहते तो विशप उसके साथ वाद-विवाद कर सकते थे, किन्तु उन्होंने अपने एक मित्रको पत्र लिखा कि मैं उनसे बहसमें नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह सम्भव है। कि मैं उनकी एकाध बातका जवाब तुरन्त न दे सकूँ अथवा मान लीजिए कि लोगों के ऊपर मेरे कहनेका असर न पड़े तो उससे लोगोंपर हक-नाहक उलटा असर पड़ेगा। इससे तो चुप रहना अच्छा है। नास्तिकतामें विश्वास रखनेवाला झगड़ता हो तो झगड़े। स्वयंसिद्ध ईश्वरके विषयको लेकर तर्कमें क्यों पड़ें?

रायचन्दभाईको एक बार ऐसा लगा था कि वे शतावधानी बनकर जगत्का कल्याण करें। उन्होंने सोचा कि यदि किसी उच्च न्यायालयके न्यायाधीशकी अध्यक्षता में बम्बईकी नगरपालिकाके सभाभवनमें वे भाषण दें और शतावधानताका प्रयोग करें, तो लोगोंकी प्रवृत्ति आत्मार्थी बनने की ओर होगी। दो-तीन दिनके बाद उन्हें ऐसा लगा कि इस सारे आडम्बरमें पड़नेकी क्या जरूरत है। उन्होंने सोचा कि इससे तो लोग केवल उनकी अपनी शक्तिके बारेमें ही जान सकेंगे। उससे ईश्वरकी शक्तिका माप थोड़े ही हो सकता है और इसलिए उन्होंने एक पत्र लिखकर क्षमा माँगी कि में वहाँ नहीं जाऊँगा और वह इसलिए कि मैं यह प्रदर्शन नहीं करना चाहता।

जिस तरह शिवके विषय में भक्त कह सकता है कि भले ही वे दिगम्बर हों, नरमुण्डोंकी माला पहनते हों किन्तु मेरे लिए तो वे ईश्वर ही हैं, मुझे किसी दूसरे आराध्यकी आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार इस श्लोकके विषय में भी समझना चाहिए। सांख्यके अनेक अर्थ हो सकते हैं। मुझे तो जितना समझमें आया उतना मैंने कह दिया और आपकी बुद्धिको जगाया। अब प्रयोग करके बता रहा हूँ। अर्थोकी विविधता शास्त्रियोंके लिए रुचिकर हो सकती है, हमारे लिए नहीं। हमें तो शास्त्रोंका अवगाह्न करके दास अथवा भक्त बनना है। ईश्वरको पहचानना है। ईश्वरको पहचाननेके लिए इतनी ऊहापोहकी आवश्यकता नहीं है। इस क्षण मेरे लिए तो सारा संसार, [ सामने बैठे हुए ] ये बालक ही हैं। में उनकी बुद्धिको जाग्रत करूँ, और मनोविनोद करते