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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी हमें मिल जाता है। यदि कोई व्यक्ति इसका प्रयोग करते हुए मनमें न रखे, तो मानना चाहिए कि वह राजमार्गका अनुसरण नहीं कर रहा है।

दृढ़ निश्चय हम उसी हालत में समताका अनुभव कर सकते हैं जब यह विश्वास रखें कि हम सब भिन्न होते हुए भी एक हैं। यों तो संसारमें दो पत्ते भी एक-से नहीं होते। आगेके तीन श्लोकोंमें अव्यवसायीका वर्णन आयेगा।

[ २४ ]

मंगलवार, २३ मार्च, १९२६

जो व्यक्ति छोटी बातोंके विषय में निश्चयात्मक हो सकता है, वह बड़ी बातोंके विषयमें भी निश्चयात्मक हो सकता है। यदि उससे कहा जायेगा कि गीली मिट्टी लेकर उसका पिण्ड बनाओ और उसमें ध्यान लगाओ तो वह एकाग्र होकर ऐसा करेगा। जिसके मनमें ध्यान लगाते समय अनेक कुतर्क और जंजाल उठेंगे उसकी बुद्धि अव्यवसायी कहलायेगी। कर्मयोगकी साधना करनेवाला व्यक्ति छोटी-बड़ी सभी बातोंके विषय में निश्चयात्मक बुद्धिवाला होता है।

अब अव्यवसायी बुद्धिका वर्णन किया जाता है। यह वर्णन करते हुए व्यासजीने जैसा कभी नहीं किया होगा, वैसा किया है — अर्थात् 'वेद'की निन्दा की है। शास्त्रों में अनेक अवान्तर बातें अंकित की गई हैं। फिर भी हम इन सबको ईश्वर-प्रणीत ही मानते रहे। यदि हम ऐसा करेंगे तो वेदवादरत कहे जायेंगे। 'वेद' का अर्थ होता है। जानना। जिसके द्वारा हम ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते हैं वह 'वेद' है। जो हमें ब्रह्मज्ञानके सर्वोत्तम साधनोंसे सज्ज कर दे वह 'वेद' है।

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः।
वेदवादरताः पार्थं नान्यदस्तीति वादिनः॥
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्।
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगति प्रति॥
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते॥ (२,४२-४४)

अज्ञानी व्यक्तिगण अर्थात् वे लोग जो पण्डित होते हुए भी वास्तविक ज्ञानसे शून्य हैं, जो पुष्पित अर्थात् अच्छी लगनेवाली, नित्य नई कलियाँ फेंकनेवाली बोली बोलते हैं, जो वेदवादमें मशगूल हैं, अनेक कामनाओंवाले हैं (अनेक प्रकारकी इच्छाएँ रखते हैं और रखनेको प्रेरित करते हैं), जो स्वर्गपरायण हैं (केवल सुख भोगनेकी इच्छा करते हैं। जो यहाँ भी मनमाने मज़े लूटनेको कहते हैं और स्वर्गमें भी ऐसी ही वस्तुओंके मिलनेका प्रलोभन भरा वर्णन करते हैं), जो कहते हैं इस स्वर्गके अति- रिक्त कुछ [ प्राप्य ] है ही नहीं, जो सदा यही कहते हैं कि जन्ममें किये हुए कर्मोंका फल अवश्य मिलता है और सुख तथा बड़प्पन पानेके लिए अनेक क्रियाओंका उपदेश करते हैं (आज भी इस तरहकी बातें करनेवाले लोग हैं), जो अनेक देवताओंका