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'गीता-शिक्षण'

बादमें जर्मनीमें लूथर हुआ। उसने कहा कि इन लोगोंने ['बाइबिल' का] ठीक अर्थ नहीं लिया। इनमें दम्भका बोलबाला है। सूर्यके पीछे अन्धकार तो दौड़ता ही है। जहाँतक सूरज जाता है, वह लगभग वहाँतक पहुँच जाता है। किन्तु जहाँतक सूरज पहुँचता है, ठेठ वहाँतक नहीं। इसी प्रकार पवित्रताके पीछे दम्भ भी। इस दम्भको उन्होंने देखा। मठोंमें अनेक अन्धविश्वास और ढोंग उनके देखने में आये। यह एक अजीब बात है कि आदमीको जो कुछ करनेकी आदत हो जाती है, वह उसे जड़-भावसे करता ही चला जाता है। उस कालमें व्यक्तियोंको जिन्दा जला दिया जाता था। वासनाओंको भस्म करनेवाले ऐसा मानते थे कि हम सबको अपनी इन्द्रियोंका दमन करना चाहिए और जो इन्द्रिय-दमन न करें, उन्हें भस्म कर दिया जाना चाहिए। ये सारी बातें लूथरने देखीं और वे एक छोरसे दूसरे छोरपर चले गये। चाहे जितना बाह्योपचार क्यों न किया जाये, आन्तरिक संयमके बिना ईश्वरका साक्षात्कार नहीं हो सकता। किन्तु प्रोटेस्टेंटोंने यह मान लिया कि कैथोलिक जो कुछ भी करते हैं, वह सभी ढोंग है और उन्होंने ईश्वरके साक्षात्कारके एक जबरदस्त साधनका सत्यानाश कर दिया। यह साधन व्यक्ति विशेषके लिए खराब भी हो सकता है; किन्तु उसका अर्थ यह नहीं है कि वह करोड़ों व्यक्तियोंके लिए बुरा हो सकता है। तथापि उन्होंने तो यही माना।

हिन्दुस्तान में भी आज ऐसी ही हवा चल रही है। कहा जाता है कि इन्द्रिय- दमन कठिन है, किन्तु वास्तव में वह कठिन नहीं है। मैं यह बात अब मानने लगा हूँ कि ऐसा नहीं है। जिन दिनों प्रयोग करता था, उन दिनों भी मानता था। इसके लिए तीन चीजोंकी जरूरत है: (१) श्रद्धा; (२) निष्ठा इतनी कि अकेले रह जायेंगे तो भी हम यही मानेंगे कि विषयोंका दमन किया जाना चाहिए; (३) इस बातकी प्रतीति कि खुराकसे देहको पोषण मिलता है, वह देहको निभानेका साधन है; किन्तु वह इन्द्रियोंको विक्षिप्त बनानेका साधन भी है। इसलिए विषयोंका पोषण बन्द होनेके लिए खुराक भी बन्द की जानी चाहिए। जब भाप इंजिनको चलाना बन्द कर देती है, जब उसकी नली फट जाती है तब भापको एकदम बन्द कर दिया जाना चाहिए। सयाना इंजीनियर समझ जायेगा कि इस समय भापको नहीं रोकूंगा तो इंजिन फट जायेगा। ऐसी ही स्थिति यहाँ भी है। इसलिए यदि देहको पोषण देते हुए इन्द्रियाँ विक्षिप्त आचरण करें, तो खुराक बन्द कर दी जानी चाहिए। किन्तु रस तो फिर भी समाप्त नहीं होगा, इसलिए इसके साथ ईश्वरके अनुग्रहकी प्रार्थना चलती रहनी चाहिए। हम प्रार्थनामें[१] ईश्वरसे अपने सहस्र अपराधोंकी क्षमा माँगते हैं। ये ऐसे अपराध हैं जो व्यक्तिको वह जहाँ नहीं जाना चाहता वहाँ खींच ले

  1. कदाचित् अभिप्राय आश्रमकी प्रातःकालीन प्रार्थनाके निम्नलिखित श्लोकसे है:

    कर-चरण-कृतं वाक-कायजं कर्मजं वा
    श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम्।
    विहितम् अविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
    जय जय करुणाब्धे! श्रीमहादेव! शम्भो!॥